“Dengu”When a mosquito becomes killing Machine

 

When a mousquito becomes "Killing Machine"

When a mosquito becomes “Killing Machine”

    

 

                                                                               एक मच्छर से हारी सरकार… पांच साल में तीन गुना जानलेवा हुआ डेंगू डेंगू

रोमांस को मधुर परिभाषाएं और फिल्मों को वैभवीय भव्यता देने वाले यश चोपड़ा ने दुनिया से विदा ले ली। लीलावती अस्पताल की तमाम आधुनिक चिकित्सीय सुविधाएं भी भारत की इस महान हस्ती को बचाने में नाकाम रही। यशराज स्टूडियो और उनके घर के फव्वारे में पल रहे डेंगू के मच्छरों को उनकी मौत का कारण माना जा रहा है। यश चोपड़ा की मौत की जांच की जाएगी। माना जा रहा है कि उनकी मौत डेंगू से हुई है। अब मुंबई नगरनिगम (बीएमसी) इसकी जांच करेगी। सूत्रों ने बताया कि बीएमसी के आला अधिकारी चोपड़ा की मौत की समीक्षा कर रहे हैं। चोपड़ा 13 अक्टूबरसे अस्पताल में भर्ती थे। चेन्नई में डेंगू की समीक्षा के लिए बैठक में स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने कहा कि डेंगू से होने वाली हर मौत की जांच होनी चाहिए।इसी बीच यश चोपड़ा की मौत को लेकर भी विवाद हो गया है। मुंबई नगरनिगम (बीएमसी) ने लीलावती अस्पताल को नोटिस भेजकर यश चोपड़ा की मौत के बारे में जानकारी मांगी है। वहीं बीएमसी ने यह भी कहा है कि यश चोपड़ा के सैट और घर पर पानी के फव्वारों में डेंगू के मच्छर होने की बात भी कही है। दरअसल डेंगू जैसे मामलों में किसी व्यक्ति की मौत होने पर अस्पताल को 24 घंटों के भीतर स्थानीय सिविक अथॉरिटी को जानकारी देनी होती है ताकि इस तरह के मामलों पर काबू पाया जा सके। बीएमसी ने अस्पताल को नोटिस भेजकर यश चोपड़ा की मेडिकल रिपोर्ट मांगी है और उन्हें डेंगू होने की जानकारी अथॉरिटी को न देने के बारे पूछा है। बीएमसी यह जानना चाहता है कि चोपड़ा को मुंबई में ही डेंगू के मच्छर ने काटा या उन्हें इस मच्छर ने उस वक्त अपना शिकार बनाया जब वह पिछले दिनों कश्मीर में छुट्टियां बिता रहे थे। बीएमसी की रिपोर्ट स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंपी जाएगी। यश चोपड़ा की मौत ने हमारा ध्यान एक बार फिर डेंगू की ओर कर दिया है। लेकिन अगर यश जी की मौत के बाद हमारा ध्यान डेंगू पर गया है तो फिर स्थिति गंभीर है क्योंकि इस साल अब तक अकेले मुंबई में 650 से अधिक और दिल्ली में 700 से अधिक डेंगू के मामले सामने आ चुके हैं। अगर बात पूरे भारत की की जाए तो अब तक 17 हजार से अधिक डेंगू के मरीज देश में सामने आ चुके हैं। देश में इस साल अब तक 100 से अधिक मौते डेंगू से हो चुकी हैं। डेंगू के बारे में एक गलतफहमी यह है कि यह गंदगी भरे इलाकों में ज्यादा होता है लेकिन मुंबई और दिल्ली में 60 फीसदी से अधिक डेंगू के मामले पॉश कॉलोनियों में सामने आए हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि डेंगू का मच्छर साफ पानी में ही जन्म लेता है। घर के अंदर लगे मनी प्लांट, फव्वारों, कूलर आदि में भरा पानी इसके पैदा होने के लिए आदर्श जगह होता है। डेंगू का मच्छर 50 मीटर से 200 मीटर तक ही उड़ान भर पाता है इसलिए ज्यादातर मच्छर मरीजों के घर में ही पनपते हैं और पड़ोसियों पर हमला करने की उनकी संभावना बेहद कम होती है। डेंगू से आम लोगों को ज्यादा डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि जरा सी सावधानियों से डेंगू से पूरी तरह बचा जा सकता है और यदि डेंगू हो भी गया है तो सही वक्त पर सही इलाज से यह पूरी तरह ठीक भी हो सकता है। भारत में डेंगू के एक प्रतिशत से भी कम (.65) मामलों में मरीजों की मौत होती है। वेक्टर जनित रोगों की रोकथाम के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों के निदेशक डॉ. धारीवाल के मुताबिक बचाव ही डेंगू का सबसे बड़ा इलाज है। वो कहते हैं, च्भारत में डेंगू के एक प्रतिशत से भी कम मामलों में मरीजों की मौत होती है, ऐसा तब होता है जब वक्त पर इलाज नहीं मिल पाता। पूरे बदन को ढकने वाले कपड़े पहनकर, अपने घर, द तर और आसपास के इलाके को साफ-सुथरा रखकर डेंगू से पूरी तरह बचा जा सकता है। यदि डेंगू का कोई भी लक्षण दिखाई दे तो तुरंत अस्पताल में जाएं, वक्त पर इलाज मिलने से डेंगू के 99.5 प्रतिशत से अधिक मरीज ठीक हो जाते हैं। डेंगू का खात्मा सिर्फ सरकार की जि मेदारी नहीं
डेंगू वायरलबीमारी है और यह तेजी से फैलती है। सरकार ने डेंगू और अन्य वेक्टर जनित रोगों की रोकथाम के लिए व्यापक कार्यक्रम चलाए हैं लेकिन इसकाम मतलब यह
नहीं है कि डेंगू की रोकथाम सिर्फ सरकार की ही जि मेदारी है। डेंगू के लिए सरकार को ही जि मेदार मानना इस समस्या को और भी विकराल बना देता है। डेंगू का मच्छर साफ पानी में पैदा होता है और दिन में ही काटता है, इसलिए डेंगू से बचाव हमारी अपनी जि मेदारी ज्यादा है। हम जहां भी रहते हैं (घर या द तर) वहां साफ पानी जमा नहीं होना चाहिए। घर में टूटे फूटे डिब्बे, बर्तन, टायर या अन्य ऐसा सामान न रखें जिसमें पानी के इकट्ठा होने की संभावना हो। यदि स्वीमिंग पुल, फव्वारे, फिश टैंक या मनी प्लांट घर में लगा है तो ध्यान रखें कि उसमें पानी एक सप्ताह के अंदर बदल ही जाना चाहिए। कूलर का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं तो उसे सुखा दें। और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहने। डेंगू का मच्छर अक्सर घुटनों के ऊपर काटता है इसलिए फुल स्लीव की शर्ट पहने और हो सके तो निकर न पहनें। बच्चों के शरीर के ढके होने का भी पूरा याल रखें। वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम के निदेशक डॉ. धारीवाल कहते हैं, च्डेंगू से घबराने की बिलकुल भी जरूरत नहीं है, जरा सी सावधानी से इससे पूरी तरह बचा जा सकता है। डेंगू का इलाज भी पूरी तरह संभव है। सरकार ने दिल्ली और देश के तमाम सरकारी अस्पतालों में डेंगू का इलाज फ्री उपलब्ध करवाया हुआ है। डेंगू के लक्षण नजर आते ही मरीजों को तुरंत सरकारी अस्पतालों में जाना चाहिए। अक्सर लोग ज्यादा खर्च की वजह से डेंगू के टेस्टों से बचते हैं। इस पर डॉक्टर धारीवाल कहते हैं, च्सराकरी अस्पतालों में डेंगू के सभी टेस्ट बिलकुल फ्री हैं। यही नहीं कोई भी प्रशिक्षित डॉक्टर मरीज को देखकर ही डेंगू के बारे में पु ता राय दे सकता है। सिर्फ डॉक्टर को दिखाने से भी डेंगू के बारे में पता चल जाता है। दिल्ली के 33 सरकारी अस्पताल और कुछ निजी अस्पताल डेंगू के फ्री टेस्ट की सेवाएं दे रहे हैं। पहले सामान्य बल्ड टेस्ट होता है जिसके बाद प्लेटलेट और अन्य टेस्ट होते हैं। डॉ. धारीवाल कहते हैं कि अगस्त, अक्टूबर और नवंबर के महीनों में लोगों को खूब पानी पीना चाहिए और दिन में मच्छरों से खुद को बचाकर रखना चाहिए। डेंगू के मच्छर को आसानी से नहीं पहचाना जा सकता इसलिए सभी मच्छरों से बचाव जरूरी
है। ज्यादार लोग दिन के वक्त में ऑफिस में होते हैं इसलिए ऑफिस में मच्छर न हों इस बात का भी पूरा याल रखने की जरूरत है। सरकारी अस्पताल में करवाए टेस्ट
डेंगू के टेस्ट सरकारी अस्पतालों में बिलकुल फ्री है। निजी अस्पतालों में इनकी अलग-अलग दरें हैं। उदारण के तौर पर लाल पैथलैब में प्लेटलेट काउंट टेस्ट 110 रुपये में होता है जबकि एनएस1 एंटीजैन टेस्ट 2000 रुपये और एंटीबॉडी टेस्ट 1560 रुपये में होता है। यहां एंटीबॉडी और एंटीजैन टेस्ट दोनों एक साथ 3300 रुपये में होते हैं। यानि लाल पैथलैब में दिल्ली में डेंगू के लिए सभी जरूरी टेस्ट करवाने पर 3410 रुपये खर्च होते हैं जबकि अन्य पैथ लैबों में यह सभी टेस्ट लगभग 2 हजार रुपये में हो जाते हैं। हालांकि जिन मरीजों को डेंगू होने का शक है और वो टेस्ट के खर्चे से डर रहे हैं उन्हें तुरंत सरकारी अस्पताल या किसी भी प्रशिक्षित डॉक्टर के पास जाना चाहिए। डॉक्टर लक्षण देखकर ही डेंगू के बारे में बता सकते हैं और अच्छे डॉक्टर बहुत जरूरी होने पर ही टेस्ट के बारे में लिखते हैं।
गैर जरूरी टेस्ट भी लिख सकते हैं डॉक्टर
सामान्य तौर पर लक्षणों से ही डेंगू होने का पता चल जाता है और इसके बाद ही जरूरी होने पर डॉक्टर ब्लड टेस्ट लिखते हैं। निजी अस्पतालों में डेंगू के टेस्ट काफी खर्चीले हैं। लेकिन डॉक्टर के टेस्ट लिखने के बाद टेस्ट कराना मरीज की मजबूरी हो जाता है। बेहतर यह है कि लक्षण दिखने पर सरकारी अस्पताल में जाया जाए। कुछ संगठन यह भी मांग कर रहे हैं कि डेंगू फैलने के मामले बढ़ने की स्थिति में सरकार को दिशा निर्देश जारी करके डेंगू टेस्ट की कीमतों पर नियंत्रण करना चाहिए। हालांकि अभी सरकार इस ओर कोई कदम उठाती दिख नहीं रही है। डेंगू के नाम पर लुटने से बचने का एकमात्र उपाय यह है कि अपने घर, द तर और आसपास के वातावरण को साफ-सुथरा रखा जाए और लक्षण दिखने पर सरकारी अस्पताल में टेस्ट करवाया जाए।

वक्त पर इलाज ही है सही इलाज
डेंगू के 80 फीसदी मरीज शुरुआत में इसे लेकर लापरवाह रहते हैं और हालात बिगड़ने पर ही अस्पताल का रुख करते हैं। उन्हें लगता है कि वो तेज बुखार से पीड़ित हैं जो जल्द ही स्वत: ठीक हो जाएगा और इस चक्कर में अस्पताल जाने से बचते हैं। शरीर में दर्द और कमजोरी के कारण डेंगू को सामान्य वायरल बुखार भी मान लिया जाता है। डेंगू के दौरान ब्लड में प्लेटलेट काउंट भी लगातार गिरता रहता है। सामान्यत: ब्लड में प्लेटलेट काउंट ढाई लाख के आस पास होता है जो डेंगू होने पर तेजी से गिरता है और 70 हजार से नीचे भी चला जाता है। 50 हजार से नीचे गिरने पर यह और भी तेजी से गिरता है और 40 हजार से कम हो जाने पर मरीज को तुरंत अस्पताल में भर्ती करवाना चाहिए। बल्ड प्लेटलेट काउंट 30 हजार से कम होने पर डॉक्टर प्लेटलेट इन् यूज करते हैं। 30 हजार से कम होने पर डेंगू शॉक की स्थिति बनती हैं और ब्लड प्रैशर कम होने के कारण मरीजों की मौत भी हो जाती है

डेंगू के सामान्य लक्षण ये हैं-
ठंड लगकर तेज बुखार आना, बुखार के दौरान बदन दर्द, सीने में दर्द, पेट दर्द, सिर, मांसपेशियों, गले व आंखों में दर्द, कमजोरी, भूख न लगना, मुंह का स्वाद खराब होना, शरीर पर चकते उभरना। डेंगू में 3 से 7 दिन तक तेज बुखार आता है। सिर, खासकर आंखों के पीछे तेज दर्द करता है। डेंगू में खून की उल्टी व अन्य अंगों से रक्तस्राव भी होता है।

Hungry India and Suffering Indian’s….

भूख से मरते लोग

When starving children will have nutritious food and quality education

When starving children will have nutritious food and quality education

ओडिशा के कालाहांडी में भूख से मरने की खबरें अक्सर राष्ट्रीय समाचार पत्रों की सुर्खियां बनती रही है लेकिन हाल ही में जब उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में एक गरीब परिवार ने जिलाधिकारी के यहां फरियाद करके कहा कि या तो उनके खाने का इतंजाम कर या उन्ह आत्महत्या का इजाजत द? इस मामल न इतना तलू पकडा¸ कि पद्रश् के मुयमंत्री ने तत्काल जिलाधिकारी का तबादला कर दिया और पीडित¸ परिवार के लिए राहत उपलब्ध कराने का आदेश दिया।

जिस देश के गोदामों में खाद्यान्न लबालब भरा हुआ है उस देश में जब लोग भूख से मरते है तो लगता है भारत और सूडान में कोई फर्क नहीं रह गया…. देश में भूख से होने वाली मौते के मामले की सनुवार्इ करत हएु एक बार सवोचर्च अदालत न कहा था कि इससे बड़े शर्म की बात क्या हो सकती है जिस देश में अनाज से गोदाम लबालब भरे हो और
गरीब आदमी भूख से मर रहा हो यह सरकार के लिए बेहद शर्मनाक  हैं। ओडिशा के कालाहांडी में भूख से मरने की खबरें अक्सर राष्ट्रीय समाचार पत्रों की सुर्खियां बनती रही है लेकिन हाल ही में जब उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में एक गरीब परिवार ने जिलाधिकारी के यहा फरियाद करके कहा कि या तो उनके खाने का इंतजाम करें या उन्हें आत्महत्या का इजाजत दे? इस मामले ने इतना तूल
पकड़ा कि प्रदेश के मु यमंत्री ने तत्काल जिलाधिकारी का तबादला कर दिया और पीडित परिवार के लिए राहत उपलब्ध कराने का आदेश दिया। अपेक्षाकृत संपन्न माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से भूख से मरने की खबरें आना वास्तव में उन नकारा अधिकारियों के लिए शर्मनाक है जो समाज कल्याण की योजनाओं को दलालों के मार्फत लूट रहे हैं। प्रदेश के हापुड जिले के एक दलित परिवार के युवक को एक ह ते से मजदूरी नहीं मिल रही थी घर में खाने के लिए कोई दाना नहीं था लिहाजा उसने आत्महत्या कर ली। प्रदेश के मु यमंत्री को अब कहना पड़ा कि अगर राज्य में कोई भूख से मरता है तो जिलाधिकारी की खैर नहीं। दरअसल महंगाई और आर्थिक तंगी की वजह से देश में मध्यवर्गीय परिवारों को घरबार चलाना दुश्वार हो रहा है। देश की जानी-मानी क पनी किंगफिशर के बारे में हर कोई जानता है इस क पनी की एयरलाइंस में काम करने वाले सैकड़ो कर्मचारियों को छह महीने से वेतन के नाम पर एक धेला भी नहीं मिला। दिल्ली में क पनी के कर्मचारी मानस चक्रवर्ती की पत्नी सुष्मिता चक्रवर्ती ने आर्थिक तंगी के चलते आत्महत्या कर ली। मानस चक्रवर्ती पांच महीने से किंगफिशर के दिल्ली द तर में काम पर जा रहे थे लेकिन उन्हें वेतन नहीं मिल रहा था। जबकि किंगफिशर के मालिक विजय माल्या के पास पैसों की कोई कमी नहीं है  वे आलीशान जिंदगी जीते है और हर साल करोड़ो रुपया तो अपनी शराब क पनी के कैलेंडर पर खर्च कर देते है लेकिन पीड़ादायक बात यह हैं कि उन्हें अपने कर्मचारियों के आर्थिक हालतों का पता नहीं? बिहार के सहरसा जिले में एक विकलांग युवक की पत्नी ने तीन मासूम बच्चों के साथ इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि वे भूख बर्दास्त नहीं कर पा रहे थे। ग्रामसभा की बीपीएल सूची में उसका नाम नहीं था और सरकार की तरफ स ेमिलन ेवाली अत्ंयोदय योजना का लाभ भी उसके दरवाजे तक नहीं पहुंच पाया था।  नीतिश कुमार के अधिकारी इस घटना पर पर्दा डालने में जुटे रहे
लेिकन मीडिया न ेउन्ह ेंजब सच्चार्इ स ेरूबरू कराया तो वे बगले झाकने लगे। देश के हर राज्य में गरीबों के कल्याण के लिए एक दर्जन से ज्यादा योजनाएं लागू है जिनमें निर्धन परिवारों को मामूली कीमत पर खाद्यान्न, वृद्धावस्था पेंशन, गरीब और बेसहारा लोगों को कंबल और साड़ी, इंदिरा आवास, मनरेगा में सुनिश्चित रोजगार, पांच साल तक के बच्चों को म ुत पोषक आहार और काम के बदल ेअनाज जसैी योजनाएं तो है लेकिन बिडंबना यह हैं कि सरकारी अधिकारी और राजनेता गरीबों की इन योजनाओं पर डाका डालते है राशन विके्रता अनाज नहीं देता और ग्राम विकास अधिकारी गरीब के कोटे का इंदिरा आवास किसी दूसरे को द ेदतेा ह ैमनरगेा में जब गरीबों को काम नहीं मिलता तो भूख से बिलबिलता हुआ मौत को गले लगा लेता
है। देश की राजधानी दिल्ली में भूख से मरने वालों की जानकारी के लिए जब एक सूचना अधिकार कार्यकर्ता ने दिल्ली पुलिस से पूछा तो खासी चौकाने वाली जानकारी सामने आई। दिल्ली पुलिस के अनुसार पिछले साल राजधानी में भूख से मरने वालों की सं या 62 थी मार्च 2012 तक 11 लोग भूख और गरीबी से दिल्ली के फुटपाथों पर मरे पाए गए। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनके पेट में खाने का एक भी दाना नहीं था यह हाल तो जब हैं कि दिल्ली सरकार ने बड़े जोर-शोर से राष्ट्रमंड़ल खेलों के सफल आयोजन का दावा किया लेकिन यह नहीं बताया कि गरीबों को भूख से बचाने के लिए उनसे क्या कदम उठाए? मजेदार बात यह हैं कि दिल्ली सरकार दिल्ली पुलिस के आंकड़ो का मानने के लिए तैयार नहीं है सरकार कहती हैं कि मौतें भूख से नहीं हुई बल्कि कुपोषण से वे लोग मरे है जो काम धंधे की तलाश में दिल्ली आते है। समाजिक कार्यकर्ता और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य हर्ष मंदर कहते हैं कि’ यह आंकड़ो कही ज्यादा है क्योंकि दिल्ली में हर रोज आठ दस लोग लावारिश की मौत मर जाते है पुलिस उन्हें प्राकृतिक मौत बता कर अंतिम संस्कार कर देती है  जबकि इस तरह की मौते भूख, बीमारी, ठंड, प्यास, गर्मी या तपेदिक की वजह से होती है। देश की राजधानी में आर्थिक तंगी और गरीबी से मरने वालों की सं या इतनी है तो फिर देश के दूसरे हिस्से का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। देशभर में सरकारी गोदामों में अनाज सड़ रहा है लेकिन राशन की दुकानों पर गरीबों के लिए एक दाना भी नहीं पहुंच रहा। खाद्य सुरक्षा सलाहकार कहते हैं कि यदि प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक में कुछ प्रावधानों को नहीं जोड़ा गया तो गरीबों के मुंह तक निवाला फिर भी नहीं पहुंच पाएगा। सर्वोच्च न्यायालय ने खाद्य सुरक्षा विधेयक की देखरेख के लिए हर राज्य में सलाहतार नियुक्ति कर रखे है लेकिन नौकरशाह उनकी नहीं सुनते और अपने हिसाब स ेगरीबी उन्मलून की योजनाओ ंको सपंादित करते है जिसमें भारी खोट है लिहाजा गरीब भूख से लड़ता रहता है।