पूरी तरह घिर गए लगते हैं अरविंद केजरीवाल

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जैसे ही अहिंसावादी अन्ना हजारे ने कहा कि उनका और अरविंद केजरीवाल का अब कोई लेना-देना नहीं है और वो केजरीवाल की पार्टी का साथ नहीं दे रहे हैं उसके बाद से तो लोगों की प्रतिक्रियाओं का ऐसा दौर शुरू हो गया है जो थामे नहीं थम रहा है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स फेसबुक पर तो लोगों ने सीधे तौर अरविंद केजरीवाल पर हमला बोल दिया है। अन्ना हजारे औऱ अरविंद केजरीवाल अलग-अलग क्या हुए, लोगों ने तरह-तरह की बाते शुरू कर दी हैं। नेताओं की छोड़िये, इंडिया अगेंस्टक करप्शुन से जुड़ने वाले लोगों की नजर में भी यही है कि जो हुआ अच्छा नहीं हुआ है, जिसके लिए दोषी केवल अरविंद केजरीवाल को ही ठहराया जा रहा है।
अन्ना आंदोलन के कार्यकर्ता अधिवक्ता नवीन चौधरी ने अपने फेसबुक वॉल पर लिखा है कि अरविंद केजरीवाल ने अन्ना हजारे का इस्तेमाल किया है। अरविंद केजरीवाल जरूरत से ज्यादा बुद्दिमान हैं, उन्हें जो हासिल करना था वो उन्होंने हासिल कर लिया है। अन्ना के आंदोलन के पहले केजरीवाल को कोई नहीं जानता था। आज वो कुछ भी बोलते हैं वो हेडलाइन बन जाती है। आज केजरीवाल को देश का बच्चा-बच्चा जानता है इसलिए उन्हें भी राजनीति का चस्का लग गया है, वो भी अपनी जेबें गर्म करना चाहते हैं, लेकिन शायद वो भूल गये हैं कि बिना अन्ना के वो कुछ नहीं है, यह बात आम जनता भी जानती हैं जो कि उनका यह सपना पूरा नहीं होने देगी।
नवीन चौधरी पिछले २० सालों से दिल्ली के जिला कोर्ट में वकालत कर रहे हैं और पिछले पांच सालों से वो अन्ना के आंदोलन में सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहे हैं। बकौल नवीन अन्ना एक सीधे और सरल इंसान हैं, वो केजरीवाल की राजनीतिक महात्वाकांक्षा को समझ नहीं पाये इसलिए उन्हें इतना अपने करीब आने दिया। टीम अन्ना के भंग होने से नवीन काफी आहत हैं उन्होंने कहा कि उन्हें भी लगने लगा है कि अन्ना का आंदोलन भटक गया है और बेकार हो गया है।
इंडिया अगेंस्टा करप्शनन से जुड़ी जज प्रीति गर्ग से जब हमने बात की तो उनका गु्स्सा एकदम से उबल पड़ा, उन्होंने कहा केजरीवाल के अंदर भी लालच आ गया है, वो लालची बन गये हैं उन्हें भी राजनीति का आकर्षण भा गया है इसलिए ही अन्ना उनसे अलग हो गये।
वहीं अन्ना आंदोलन के कार्यकर्ता स्टेट बैंक वाराणसी के ब्रांच मैनेजर सुशील कुमार सिंह ने अपने फेसबुक वॉल पर लिखा है कि अरविंद केजरीवाल जरूरत से ज्यादा बुद्दिमान हैं, उन्हें जो हासिल करना था वो उन्होंने हासिल कर लिया है। अन्ना के आंदोलन के पहले केजरीवाल को कोई नहीं जानता था। आज वो कुछ भी बोलते हैं वो हेडलाइन बन जाती है। आज केजरीवाल को देश का बच्चा-बच्चा जानता है इसलिए उन्हें भी राजनीति का चस्का लग गया है, वो भी अपनी जेबें गर्म करना चाहते हैं, लेकिन शायद वो भूल गये हैं कि बिना अन्ना के वो कुछ नहीं है, यह बात आम जनता भी जानती हैं जो कि उनका यह सपना पूरा नहीं होने देगी।
गौरतलब है कि राजनीतिक पार्टी के खिलाफ रहे अन्ना हजारे ने बुधवार को ऐलान किया था कि वो केजरीवाल के साथ कोई पार्टी नहीं बना रहे हैं । उन्होंने साफ तौर पर केजरीवाल को हिदायत दी है कि वो अपने कैंपेन के दौरान उनकी न तो तस्वीरों का इस्तेमाल करें और न ही उनके किसी बयान का।
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दौरान जुटी रकम को अन्ना हजारे वापस नहीं लेंगे। यह रकम अरविंद केजरीवाल के पास है। उन्होंने इसे अन्ना को देने की पेशकश भी की है, लेकिन हजारे ने मना कर दिया है। यह राशि करीब दो करोड़ रुपए की बताई जा रही है।
अन्ना ने पिछले दिनों हुई बैठक में अपने समर्थकों को बताया था कि केजरीवाल ने उन्हें राशि लौटाने की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया। मीटिंग में मौजूद लोगों के मुताबिक, अन्ना ने केजरीवाल से कहा था कि वे पैसे अपने पास रखें। अन्ना ने १९ सितंबर को एक मीटिंग के बाद घोषणा की थी कि अब केजरीवाल और उनके रास्ते अलग हैं। इसके अगले दिन दिल्ली के महाराष्ट्र सदन में अन्ना समर्थकों की एक बैठक हुई। इसमें रकम के मसले पर चर्चा हुई थी। हालांकि अन्ना समर्थकों के एक वर्ग की राय है कि आंदोलन चलाने के लिए उन्हें धन की जरूरत होगी। लिहाजा केजरीवाल से पैसे वापस ले लेने चाहिए। लेकिन हजारे का कहना है कि धन का मुद्दा इस लड़ाई का बिंदु नहीं होना चाहिए।
अरविंद केजरीवाल कहते हैं, ‘कुछ लोग कहते हैं कि अन्ना हमसे अलग हो गए हैं। मगर वे हमारे दिलों में हैं। उन्हें हमसे दूर कोई नहीं कर सकता।’ उन्होंने कहा, ‘हममें ऐसा कोई बड़ा मतभेद नहीं है। यह तो बस इतना है कि वे मानते हैं कि राजनीति गंदी है। हम सोचते हैं कि राजनीति की गंदगी को साफ करने के लिए हमें इसमें आना ही होगा। यदि हम ईमानदारी से काम करते रहे तो तीन चार माह बाद अन्ना हमारे साथ लौट आएंगे।’
केजरीवाल ने ३०० कार्यकर्ताओं के साथ जंतर-मंतर परदिल्ली सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। मांग थी बिजली की दरों में बढ़ोतरी वापस लेने की। केजरीवाल ने कहा, ‘बिजली का शुल्क दोगुना हो गयाहै। जहां पहले लोग २०० यूनिट बिजली की खपत के लिए ५०० रुपए देते थे। अब १,००० रुपए देने पड़ रहे हैं। ‘
अरविंद केजरीवाल आंदोलन के दिमाग थे। अब यह भूमिका किरण बेदी या किसी और को निभानी होगी। जनता के जुड़ाव को कायम रखने एवं आंदोलन के लिए पैसे जुटाने का काम नए सिरे से करना होगा। बाबा रामदेव की भूमिका निर्णायक। अन्ना को यह साबित करना होगा कि आंदोलन पर संघ का प्रभाव नहीं है। जनलोकपाल को लेकर आंदोलन को गति देने की जरूरत।
मगर बीच रास्ते में आंदोलन छोडऩे से विश्वास घटा। दोबारा वैसा ही भरोसा हासिल करना मुश्किल होगा। अन्ना चेहरा थे। वे अब साथ नहीं है। लोगों का भरोसा बनाए रखने के लिए खुदही चेहरा बनना होगा। साबित करना होगा कि राजनीति मेंआने का फैसला सही था।:जनलोकपाल की जरूरत को उनके दिमाग में जिंदा रखना होगा। अलग-अलग जन आंदोलनों को अपनेसाथ जोडऩा होगा। लेकिन, राजनीतिक महत्वाकांक्षी होने के आरोपों को दूर करने की चुनौती होगी।
सरकार ने नजरअंदाज करना शुरू करदिया है। यानी मांगों पर नहीं झुकेगी।:दो धड़ों में बंटे आंदोलन का लक्ष्य एक है। समानांतर रूप से चलता रहेगा। लेकिन… लोकपाल के आंदोलन का जो माहौल बना था, वैसा निकट भविष्य में संभव नहीं लगता।
बिखराव के पीछे संघ, साथी या स्वयं अन्ना? भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का चेहरा अन्ना हजारे थे तो दिमाग अरविंद केजरीवाल। दो अगस्त को अन्ना हजारे ने खुद राजनीतिक विकल्प देने का ऐलान किया था। लेकिन अब अन्ना राजनीति से दूर रहने की बात कर रहे हैं। सिलसिलेवार कडिय़ां जोड़ें तो सही तस्वीर सामने आएगी।
पहली बार अन्ना के बिना आंदोलन हुआ। अरविंद (अरविंद केजरीवाल से उम्मीमदों और नाउम्मी्दी के ९ कारण, पढ़ें) भूख हड़ताल पर बैठे। लेकिन भीड़ नहीं थी। २ अगस्त आते-आते अन्ना मंच पर लौटे और भीड़ भी। वरिष्ठ नागरिकों के पत्र पर अनशन टूटा। अन्ना बोले, बहुत हुआ आंदोलन। अब और नहीं। राजनीतिक विकल्प देने का वक्त आ गया है। लोगों से राय मांगेंगे। पार्टी का ऐलान २ अक्टूबर को होगा। यह तय हुआ। बैठक में किरण बेदी भी थीं। इस बीच केजरीवाल ने प्रधानमंत्री,कांग्रेस अध्यक्ष और भाजपा अध्यक्ष का घेराव करने की घोषणा की। किरण बेदी बिदक गईं। कहा- ‘भाजपा पर हमले करनेकी जरूरत नहीं है।’
आरोप लगे कि बेदी को भाजपा दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाना चाहती है। बेदी मुकरती रहीं। घेराव से दूर रहीं। बोलीं, बिखर गई है टीम। इस बीच उम्मीदवारों के लिए शर्तें तय हुईं। अन्ना से केजरीवाल ने हामी भी भरवाई। मीडिया को बताया कि सभी को शपथ पत्र देना होगा कि जीते तो लाल बत्ती नहीं लगाएंगे। सुरक्षाकर्मी, बंगला नहीं लेंगे।…लेकिन अन्ना ने आंदोलन का पता ही बदल दिया। ब्लॉग में लिखा कि मुझे राजनीतिक दलों पर भरोसा नहीं है। मेरा आंदोलन जारी रहेगा। समर्थकों से मुलाकात की। १९ सितंबर को कहा, मैं केजरीवाल के सभी उम्मीदवारों को समर्थन नहीं दूंगा।
इसी दिन रात को अन्ना ने दिल्ली में बाबा रामदेव से मुलाकात की। मीडिया से खुलकर बात करने वाले अन्ना भी सवालों से बचते दिखे। मीडिया ने दावा किया कि अन्ना-केजरीवाल में फूट संघ ने डाली। संघ प्रवक्ता राम माधव को यह जिम्मा सौंपा गया था। सीताराम जिंदल कई बार हजारे से मिलने उनके गांव गए। अब तो आंदोलन ही अंधे का हाथी हो गया है। राजनेता मजे से चल रहे घटनाक्रम को देख रहे हैं। जिन्हें आंदोलन से उम्मीद थी, वे ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

“Dengu”When a mosquito becomes killing Machine

 

When a mousquito becomes "Killing Machine"

When a mosquito becomes “Killing Machine”

    

 

                                                                               एक मच्छर से हारी सरकार… पांच साल में तीन गुना जानलेवा हुआ डेंगू डेंगू

रोमांस को मधुर परिभाषाएं और फिल्मों को वैभवीय भव्यता देने वाले यश चोपड़ा ने दुनिया से विदा ले ली। लीलावती अस्पताल की तमाम आधुनिक चिकित्सीय सुविधाएं भी भारत की इस महान हस्ती को बचाने में नाकाम रही। यशराज स्टूडियो और उनके घर के फव्वारे में पल रहे डेंगू के मच्छरों को उनकी मौत का कारण माना जा रहा है। यश चोपड़ा की मौत की जांच की जाएगी। माना जा रहा है कि उनकी मौत डेंगू से हुई है। अब मुंबई नगरनिगम (बीएमसी) इसकी जांच करेगी। सूत्रों ने बताया कि बीएमसी के आला अधिकारी चोपड़ा की मौत की समीक्षा कर रहे हैं। चोपड़ा 13 अक्टूबरसे अस्पताल में भर्ती थे। चेन्नई में डेंगू की समीक्षा के लिए बैठक में स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने कहा कि डेंगू से होने वाली हर मौत की जांच होनी चाहिए।इसी बीच यश चोपड़ा की मौत को लेकर भी विवाद हो गया है। मुंबई नगरनिगम (बीएमसी) ने लीलावती अस्पताल को नोटिस भेजकर यश चोपड़ा की मौत के बारे में जानकारी मांगी है। वहीं बीएमसी ने यह भी कहा है कि यश चोपड़ा के सैट और घर पर पानी के फव्वारों में डेंगू के मच्छर होने की बात भी कही है। दरअसल डेंगू जैसे मामलों में किसी व्यक्ति की मौत होने पर अस्पताल को 24 घंटों के भीतर स्थानीय सिविक अथॉरिटी को जानकारी देनी होती है ताकि इस तरह के मामलों पर काबू पाया जा सके। बीएमसी ने अस्पताल को नोटिस भेजकर यश चोपड़ा की मेडिकल रिपोर्ट मांगी है और उन्हें डेंगू होने की जानकारी अथॉरिटी को न देने के बारे पूछा है। बीएमसी यह जानना चाहता है कि चोपड़ा को मुंबई में ही डेंगू के मच्छर ने काटा या उन्हें इस मच्छर ने उस वक्त अपना शिकार बनाया जब वह पिछले दिनों कश्मीर में छुट्टियां बिता रहे थे। बीएमसी की रिपोर्ट स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंपी जाएगी। यश चोपड़ा की मौत ने हमारा ध्यान एक बार फिर डेंगू की ओर कर दिया है। लेकिन अगर यश जी की मौत के बाद हमारा ध्यान डेंगू पर गया है तो फिर स्थिति गंभीर है क्योंकि इस साल अब तक अकेले मुंबई में 650 से अधिक और दिल्ली में 700 से अधिक डेंगू के मामले सामने आ चुके हैं। अगर बात पूरे भारत की की जाए तो अब तक 17 हजार से अधिक डेंगू के मरीज देश में सामने आ चुके हैं। देश में इस साल अब तक 100 से अधिक मौते डेंगू से हो चुकी हैं। डेंगू के बारे में एक गलतफहमी यह है कि यह गंदगी भरे इलाकों में ज्यादा होता है लेकिन मुंबई और दिल्ली में 60 फीसदी से अधिक डेंगू के मामले पॉश कॉलोनियों में सामने आए हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि डेंगू का मच्छर साफ पानी में ही जन्म लेता है। घर के अंदर लगे मनी प्लांट, फव्वारों, कूलर आदि में भरा पानी इसके पैदा होने के लिए आदर्श जगह होता है। डेंगू का मच्छर 50 मीटर से 200 मीटर तक ही उड़ान भर पाता है इसलिए ज्यादातर मच्छर मरीजों के घर में ही पनपते हैं और पड़ोसियों पर हमला करने की उनकी संभावना बेहद कम होती है। डेंगू से आम लोगों को ज्यादा डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि जरा सी सावधानियों से डेंगू से पूरी तरह बचा जा सकता है और यदि डेंगू हो भी गया है तो सही वक्त पर सही इलाज से यह पूरी तरह ठीक भी हो सकता है। भारत में डेंगू के एक प्रतिशत से भी कम (.65) मामलों में मरीजों की मौत होती है। वेक्टर जनित रोगों की रोकथाम के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों के निदेशक डॉ. धारीवाल के मुताबिक बचाव ही डेंगू का सबसे बड़ा इलाज है। वो कहते हैं, च्भारत में डेंगू के एक प्रतिशत से भी कम मामलों में मरीजों की मौत होती है, ऐसा तब होता है जब वक्त पर इलाज नहीं मिल पाता। पूरे बदन को ढकने वाले कपड़े पहनकर, अपने घर, द तर और आसपास के इलाके को साफ-सुथरा रखकर डेंगू से पूरी तरह बचा जा सकता है। यदि डेंगू का कोई भी लक्षण दिखाई दे तो तुरंत अस्पताल में जाएं, वक्त पर इलाज मिलने से डेंगू के 99.5 प्रतिशत से अधिक मरीज ठीक हो जाते हैं। डेंगू का खात्मा सिर्फ सरकार की जि मेदारी नहीं
डेंगू वायरलबीमारी है और यह तेजी से फैलती है। सरकार ने डेंगू और अन्य वेक्टर जनित रोगों की रोकथाम के लिए व्यापक कार्यक्रम चलाए हैं लेकिन इसकाम मतलब यह
नहीं है कि डेंगू की रोकथाम सिर्फ सरकार की ही जि मेदारी है। डेंगू के लिए सरकार को ही जि मेदार मानना इस समस्या को और भी विकराल बना देता है। डेंगू का मच्छर साफ पानी में पैदा होता है और दिन में ही काटता है, इसलिए डेंगू से बचाव हमारी अपनी जि मेदारी ज्यादा है। हम जहां भी रहते हैं (घर या द तर) वहां साफ पानी जमा नहीं होना चाहिए। घर में टूटे फूटे डिब्बे, बर्तन, टायर या अन्य ऐसा सामान न रखें जिसमें पानी के इकट्ठा होने की संभावना हो। यदि स्वीमिंग पुल, फव्वारे, फिश टैंक या मनी प्लांट घर में लगा है तो ध्यान रखें कि उसमें पानी एक सप्ताह के अंदर बदल ही जाना चाहिए। कूलर का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं तो उसे सुखा दें। और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहने। डेंगू का मच्छर अक्सर घुटनों के ऊपर काटता है इसलिए फुल स्लीव की शर्ट पहने और हो सके तो निकर न पहनें। बच्चों के शरीर के ढके होने का भी पूरा याल रखें। वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम के निदेशक डॉ. धारीवाल कहते हैं, च्डेंगू से घबराने की बिलकुल भी जरूरत नहीं है, जरा सी सावधानी से इससे पूरी तरह बचा जा सकता है। डेंगू का इलाज भी पूरी तरह संभव है। सरकार ने दिल्ली और देश के तमाम सरकारी अस्पतालों में डेंगू का इलाज फ्री उपलब्ध करवाया हुआ है। डेंगू के लक्षण नजर आते ही मरीजों को तुरंत सरकारी अस्पतालों में जाना चाहिए। अक्सर लोग ज्यादा खर्च की वजह से डेंगू के टेस्टों से बचते हैं। इस पर डॉक्टर धारीवाल कहते हैं, च्सराकरी अस्पतालों में डेंगू के सभी टेस्ट बिलकुल फ्री हैं। यही नहीं कोई भी प्रशिक्षित डॉक्टर मरीज को देखकर ही डेंगू के बारे में पु ता राय दे सकता है। सिर्फ डॉक्टर को दिखाने से भी डेंगू के बारे में पता चल जाता है। दिल्ली के 33 सरकारी अस्पताल और कुछ निजी अस्पताल डेंगू के फ्री टेस्ट की सेवाएं दे रहे हैं। पहले सामान्य बल्ड टेस्ट होता है जिसके बाद प्लेटलेट और अन्य टेस्ट होते हैं। डॉ. धारीवाल कहते हैं कि अगस्त, अक्टूबर और नवंबर के महीनों में लोगों को खूब पानी पीना चाहिए और दिन में मच्छरों से खुद को बचाकर रखना चाहिए। डेंगू के मच्छर को आसानी से नहीं पहचाना जा सकता इसलिए सभी मच्छरों से बचाव जरूरी
है। ज्यादार लोग दिन के वक्त में ऑफिस में होते हैं इसलिए ऑफिस में मच्छर न हों इस बात का भी पूरा याल रखने की जरूरत है। सरकारी अस्पताल में करवाए टेस्ट
डेंगू के टेस्ट सरकारी अस्पतालों में बिलकुल फ्री है। निजी अस्पतालों में इनकी अलग-अलग दरें हैं। उदारण के तौर पर लाल पैथलैब में प्लेटलेट काउंट टेस्ट 110 रुपये में होता है जबकि एनएस1 एंटीजैन टेस्ट 2000 रुपये और एंटीबॉडी टेस्ट 1560 रुपये में होता है। यहां एंटीबॉडी और एंटीजैन टेस्ट दोनों एक साथ 3300 रुपये में होते हैं। यानि लाल पैथलैब में दिल्ली में डेंगू के लिए सभी जरूरी टेस्ट करवाने पर 3410 रुपये खर्च होते हैं जबकि अन्य पैथ लैबों में यह सभी टेस्ट लगभग 2 हजार रुपये में हो जाते हैं। हालांकि जिन मरीजों को डेंगू होने का शक है और वो टेस्ट के खर्चे से डर रहे हैं उन्हें तुरंत सरकारी अस्पताल या किसी भी प्रशिक्षित डॉक्टर के पास जाना चाहिए। डॉक्टर लक्षण देखकर ही डेंगू के बारे में बता सकते हैं और अच्छे डॉक्टर बहुत जरूरी होने पर ही टेस्ट के बारे में लिखते हैं।
गैर जरूरी टेस्ट भी लिख सकते हैं डॉक्टर
सामान्य तौर पर लक्षणों से ही डेंगू होने का पता चल जाता है और इसके बाद ही जरूरी होने पर डॉक्टर ब्लड टेस्ट लिखते हैं। निजी अस्पतालों में डेंगू के टेस्ट काफी खर्चीले हैं। लेकिन डॉक्टर के टेस्ट लिखने के बाद टेस्ट कराना मरीज की मजबूरी हो जाता है। बेहतर यह है कि लक्षण दिखने पर सरकारी अस्पताल में जाया जाए। कुछ संगठन यह भी मांग कर रहे हैं कि डेंगू फैलने के मामले बढ़ने की स्थिति में सरकार को दिशा निर्देश जारी करके डेंगू टेस्ट की कीमतों पर नियंत्रण करना चाहिए। हालांकि अभी सरकार इस ओर कोई कदम उठाती दिख नहीं रही है। डेंगू के नाम पर लुटने से बचने का एकमात्र उपाय यह है कि अपने घर, द तर और आसपास के वातावरण को साफ-सुथरा रखा जाए और लक्षण दिखने पर सरकारी अस्पताल में टेस्ट करवाया जाए।

वक्त पर इलाज ही है सही इलाज
डेंगू के 80 फीसदी मरीज शुरुआत में इसे लेकर लापरवाह रहते हैं और हालात बिगड़ने पर ही अस्पताल का रुख करते हैं। उन्हें लगता है कि वो तेज बुखार से पीड़ित हैं जो जल्द ही स्वत: ठीक हो जाएगा और इस चक्कर में अस्पताल जाने से बचते हैं। शरीर में दर्द और कमजोरी के कारण डेंगू को सामान्य वायरल बुखार भी मान लिया जाता है। डेंगू के दौरान ब्लड में प्लेटलेट काउंट भी लगातार गिरता रहता है। सामान्यत: ब्लड में प्लेटलेट काउंट ढाई लाख के आस पास होता है जो डेंगू होने पर तेजी से गिरता है और 70 हजार से नीचे भी चला जाता है। 50 हजार से नीचे गिरने पर यह और भी तेजी से गिरता है और 40 हजार से कम हो जाने पर मरीज को तुरंत अस्पताल में भर्ती करवाना चाहिए। बल्ड प्लेटलेट काउंट 30 हजार से कम होने पर डॉक्टर प्लेटलेट इन् यूज करते हैं। 30 हजार से कम होने पर डेंगू शॉक की स्थिति बनती हैं और ब्लड प्रैशर कम होने के कारण मरीजों की मौत भी हो जाती है

डेंगू के सामान्य लक्षण ये हैं-
ठंड लगकर तेज बुखार आना, बुखार के दौरान बदन दर्द, सीने में दर्द, पेट दर्द, सिर, मांसपेशियों, गले व आंखों में दर्द, कमजोरी, भूख न लगना, मुंह का स्वाद खराब होना, शरीर पर चकते उभरना। डेंगू में 3 से 7 दिन तक तेज बुखार आता है। सिर, खासकर आंखों के पीछे तेज दर्द करता है। डेंगू में खून की उल्टी व अन्य अंगों से रक्तस्राव भी होता है।

Hungry India and Suffering Indian’s….

भूख से मरते लोग

When starving children will have nutritious food and quality education

When starving children will have nutritious food and quality education

ओडिशा के कालाहांडी में भूख से मरने की खबरें अक्सर राष्ट्रीय समाचार पत्रों की सुर्खियां बनती रही है लेकिन हाल ही में जब उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में एक गरीब परिवार ने जिलाधिकारी के यहां फरियाद करके कहा कि या तो उनके खाने का इतंजाम कर या उन्ह आत्महत्या का इजाजत द? इस मामल न इतना तलू पकडा¸ कि पद्रश् के मुयमंत्री ने तत्काल जिलाधिकारी का तबादला कर दिया और पीडित¸ परिवार के लिए राहत उपलब्ध कराने का आदेश दिया।

जिस देश के गोदामों में खाद्यान्न लबालब भरा हुआ है उस देश में जब लोग भूख से मरते है तो लगता है भारत और सूडान में कोई फर्क नहीं रह गया…. देश में भूख से होने वाली मौते के मामले की सनुवार्इ करत हएु एक बार सवोचर्च अदालत न कहा था कि इससे बड़े शर्म की बात क्या हो सकती है जिस देश में अनाज से गोदाम लबालब भरे हो और
गरीब आदमी भूख से मर रहा हो यह सरकार के लिए बेहद शर्मनाक  हैं। ओडिशा के कालाहांडी में भूख से मरने की खबरें अक्सर राष्ट्रीय समाचार पत्रों की सुर्खियां बनती रही है लेकिन हाल ही में जब उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में एक गरीब परिवार ने जिलाधिकारी के यहा फरियाद करके कहा कि या तो उनके खाने का इंतजाम करें या उन्हें आत्महत्या का इजाजत दे? इस मामले ने इतना तूल
पकड़ा कि प्रदेश के मु यमंत्री ने तत्काल जिलाधिकारी का तबादला कर दिया और पीडित परिवार के लिए राहत उपलब्ध कराने का आदेश दिया। अपेक्षाकृत संपन्न माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से भूख से मरने की खबरें आना वास्तव में उन नकारा अधिकारियों के लिए शर्मनाक है जो समाज कल्याण की योजनाओं को दलालों के मार्फत लूट रहे हैं। प्रदेश के हापुड जिले के एक दलित परिवार के युवक को एक ह ते से मजदूरी नहीं मिल रही थी घर में खाने के लिए कोई दाना नहीं था लिहाजा उसने आत्महत्या कर ली। प्रदेश के मु यमंत्री को अब कहना पड़ा कि अगर राज्य में कोई भूख से मरता है तो जिलाधिकारी की खैर नहीं। दरअसल महंगाई और आर्थिक तंगी की वजह से देश में मध्यवर्गीय परिवारों को घरबार चलाना दुश्वार हो रहा है। देश की जानी-मानी क पनी किंगफिशर के बारे में हर कोई जानता है इस क पनी की एयरलाइंस में काम करने वाले सैकड़ो कर्मचारियों को छह महीने से वेतन के नाम पर एक धेला भी नहीं मिला। दिल्ली में क पनी के कर्मचारी मानस चक्रवर्ती की पत्नी सुष्मिता चक्रवर्ती ने आर्थिक तंगी के चलते आत्महत्या कर ली। मानस चक्रवर्ती पांच महीने से किंगफिशर के दिल्ली द तर में काम पर जा रहे थे लेकिन उन्हें वेतन नहीं मिल रहा था। जबकि किंगफिशर के मालिक विजय माल्या के पास पैसों की कोई कमी नहीं है  वे आलीशान जिंदगी जीते है और हर साल करोड़ो रुपया तो अपनी शराब क पनी के कैलेंडर पर खर्च कर देते है लेकिन पीड़ादायक बात यह हैं कि उन्हें अपने कर्मचारियों के आर्थिक हालतों का पता नहीं? बिहार के सहरसा जिले में एक विकलांग युवक की पत्नी ने तीन मासूम बच्चों के साथ इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि वे भूख बर्दास्त नहीं कर पा रहे थे। ग्रामसभा की बीपीएल सूची में उसका नाम नहीं था और सरकार की तरफ स ेमिलन ेवाली अत्ंयोदय योजना का लाभ भी उसके दरवाजे तक नहीं पहुंच पाया था।  नीतिश कुमार के अधिकारी इस घटना पर पर्दा डालने में जुटे रहे
लेिकन मीडिया न ेउन्ह ेंजब सच्चार्इ स ेरूबरू कराया तो वे बगले झाकने लगे। देश के हर राज्य में गरीबों के कल्याण के लिए एक दर्जन से ज्यादा योजनाएं लागू है जिनमें निर्धन परिवारों को मामूली कीमत पर खाद्यान्न, वृद्धावस्था पेंशन, गरीब और बेसहारा लोगों को कंबल और साड़ी, इंदिरा आवास, मनरेगा में सुनिश्चित रोजगार, पांच साल तक के बच्चों को म ुत पोषक आहार और काम के बदल ेअनाज जसैी योजनाएं तो है लेकिन बिडंबना यह हैं कि सरकारी अधिकारी और राजनेता गरीबों की इन योजनाओं पर डाका डालते है राशन विके्रता अनाज नहीं देता और ग्राम विकास अधिकारी गरीब के कोटे का इंदिरा आवास किसी दूसरे को द ेदतेा ह ैमनरगेा में जब गरीबों को काम नहीं मिलता तो भूख से बिलबिलता हुआ मौत को गले लगा लेता
है। देश की राजधानी दिल्ली में भूख से मरने वालों की जानकारी के लिए जब एक सूचना अधिकार कार्यकर्ता ने दिल्ली पुलिस से पूछा तो खासी चौकाने वाली जानकारी सामने आई। दिल्ली पुलिस के अनुसार पिछले साल राजधानी में भूख से मरने वालों की सं या 62 थी मार्च 2012 तक 11 लोग भूख और गरीबी से दिल्ली के फुटपाथों पर मरे पाए गए। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनके पेट में खाने का एक भी दाना नहीं था यह हाल तो जब हैं कि दिल्ली सरकार ने बड़े जोर-शोर से राष्ट्रमंड़ल खेलों के सफल आयोजन का दावा किया लेकिन यह नहीं बताया कि गरीबों को भूख से बचाने के लिए उनसे क्या कदम उठाए? मजेदार बात यह हैं कि दिल्ली सरकार दिल्ली पुलिस के आंकड़ो का मानने के लिए तैयार नहीं है सरकार कहती हैं कि मौतें भूख से नहीं हुई बल्कि कुपोषण से वे लोग मरे है जो काम धंधे की तलाश में दिल्ली आते है। समाजिक कार्यकर्ता और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य हर्ष मंदर कहते हैं कि’ यह आंकड़ो कही ज्यादा है क्योंकि दिल्ली में हर रोज आठ दस लोग लावारिश की मौत मर जाते है पुलिस उन्हें प्राकृतिक मौत बता कर अंतिम संस्कार कर देती है  जबकि इस तरह की मौते भूख, बीमारी, ठंड, प्यास, गर्मी या तपेदिक की वजह से होती है। देश की राजधानी में आर्थिक तंगी और गरीबी से मरने वालों की सं या इतनी है तो फिर देश के दूसरे हिस्से का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। देशभर में सरकारी गोदामों में अनाज सड़ रहा है लेकिन राशन की दुकानों पर गरीबों के लिए एक दाना भी नहीं पहुंच रहा। खाद्य सुरक्षा सलाहकार कहते हैं कि यदि प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक में कुछ प्रावधानों को नहीं जोड़ा गया तो गरीबों के मुंह तक निवाला फिर भी नहीं पहुंच पाएगा। सर्वोच्च न्यायालय ने खाद्य सुरक्षा विधेयक की देखरेख के लिए हर राज्य में सलाहतार नियुक्ति कर रखे है लेकिन नौकरशाह उनकी नहीं सुनते और अपने हिसाब स ेगरीबी उन्मलून की योजनाओ ंको सपंादित करते है जिसमें भारी खोट है लिहाजा गरीब भूख से लड़ता रहता है।

Massive crowd may be the indication to change”Bishnoi wins Hisar bypolls”

public indiacate change

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 This crowd trys to say sumthing....

This crowd trys to say sumthing….

हजकां BJP गठबंधन की भीड़ कुछ कह रही है

हजकां के कार्यक्रमों-रैलियों में जनता ने बढ़-चढक़र हिस्सा लेकर इसका मुजाहिरा भी किया। हजकां के स्थापना दिवस (2 दिसंबर) को सिरसा में हुई जनसमर्थन महारैली में जब लाखों की भीड़ कुलदीप को सुनने के लिए इक हुई, तो एक बार कुलदीप भी अचंभित हो गए थे।

प्रदेश के मुयमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपनी तारीफों के पुल बांधने में कभी नहीं चुकते हैं लेकिन 2 दिसंबर को हरियाणा जनहित कांग्रेस की सिरसा में हुई रैली में पहुंचे लाखों लोगों की भीड़ कांग्रेस सरकार की
कार्यशैली से खुश नहीं दिखी। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस सरकार द्वारा एक के बाद एक अलोकतांरक फैसल करन और इंडियन नेशनल लोकदल के कर्ताधर्ता चौटाला बंधुओं पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के कारण राज्य में हजकां-भाजपा गठबंधन का राजनीतिक ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। हरियाणा में एक पार्टी है- हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां)। प्रदेश की राजनीति में कद्दावर नेता रहे स्व. चौधरी भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई इस पार्टी के सर्वेसर्वा हैं। मजबूत राजनीतिक विरासत होने के बावजूद
अपनी नई पार्टी के गठन के शुरूआती वर्षों में कलुदीप को वसैा जनसमथर्न नही मिला, जिसकी वह उ मीद कर रहे थे, लेकिन अब जब प्रदेश की जनता यह समझने लगी है कि कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के नेता भ्रष्टाचार में आकंड डूबे हुए हैं और इन दलों में परिवारवाद हावी है, तब लोगों की उ मीदें हजकां से बढऩे लगी हैं। हजकां के कार्यक्रमों-रैलियों में जनता ने बढ़-चढक़र हिस्सा लेकर इसका मजुाहिरा भी किया। हजका के स्थापना दिवस (2 दिसंबर) को सिरसा में हुई जनसमर्थन महारैली में जब लाखों की भीड़ कुलदीप को सुनने के लिए इक हइुर्, तो एक बार कलुदीप भी अचंभत हो गए थे। उन्हें भी उ मीद नहीं थी कि उन्हें और उनकी पार्टी को इतना ज्यादा जनसमथर्न मिलगेा। रलैी म आर्इ भीड क़ो दखेकर गदगद हएु कलुदीप ने कहा कि यह भीड़ जुटाई हुई नहीं है, बल्कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार की नीतियों से तंग आकर लोग स्वयं उनके साथ जुड़ रहे हैं। पांच साल पहले हुड्डा के गृह स्थान रोहतक में हुड्डा ग्राउंड में जनहित रैली में जब पूरे- प्रदेश से ला लोगों ने हिस्सा लिया था तो राज्य की समस्त जनता ही नहीं राजनीति के तमाम दिग्गजों ने माना था कि इनती बड़ी रैली पहले क नहीं हुई पर पांच साल बाद फिर लोगों का वही हुजूम सिरसा के दशहरा ग्राउंड में दे कर लोग अचं त रह गये साथ ही राजनीति में चाल ला दिया है। दरअसल हरियाणा की राजनीति को समझने वाले बताते हैं कि प्रदेश की सत्ता में अब तक कांग्रेस और इनेलो का ही कब्जा रहा है, लेकिन बीते कुछ सालों से प्रदेश की जनता नए नेतृत्व की तलाश में थी, जो अब लगता है कि कुलदीप पर जाकर खत्म हुई है। दरअसल कांग्रेस और इनेलो में से जो भी सत्ता में आया, उसने अंधा बांटे रेवडिय़ां, फिर-फिर अपनों को दे कहावत को ही चरितार्थ किया। सरकारी योजनाओं व संसाधनों को इस तरह खुलेआम लूटा गया कि जनता हतप्रभ रह गइर्। राज्य की मौजदूा हालत पर कलुदीप कहते हैं कि कांग्रेस के वर्तमान शासन में जाति व क्षत्र्ेा के नाम पर भदेभाव को बढा़वा दिया गया है। इसके अलावा गुंडाराज, महंगाई, भ्रष्टाचार से प्रदेश की जनता तंग आ चुकी है।
जनता के आशीर्वाद से हजकां के गठन के पांच साल के कार्यकाल में उन्होंने कांग्रेस सरकार के विरूद्ध आम जनता का साथ देते हुए डट कर संघर्ष किया है। अगर जनता ने आगे भी इसी तरह साथ देते हुए हजकां-भाजपा गठबन्धन को सत्ता सौंपी, तो वे राजनीति के मायने ही बदल देंगे। इतनी बड़ी सं या में किसी रैली में महिलाओं की सं या पहले क नहीं दि । रैली में पुरूषों के समान ही महिलाओं में जोश दे ने को मिला। हरियाणा में महिलाओं
की स्थिति पर दिए गए षणों पर महिलाओं ने तालियों की गडग़ड़ाहट के साथ समर्थन किया। बहरहाल, हजकां की सिरसा में हुई रैली में जिस तरह लोगों का हुजूम पहुंचा, उससे कुलदीप काफी उत्साहित हैं और उनका कहना है कि वे अन्य जगहों में भी ऐसी रैलियां आयोजित करेंगे। सोनीपत संसदीय क्षेत्र के हजकां प्रभारी जोगेंद्र कालवा ने कहा कि हजकां-भाजपा का ग्राफ प्रदेश में बढ़ता जा रहा है। हजकां सुप्रीम कुलदीप बिश्नोई 36 बिरादरी के नेता हैं और वे सभी बिरादरियों को साथ लेकर चलते हैं। कुलदीप युवाओं के भी सच्चे हितैषी हैं और वे ही युवाओं के हितों की रक्षा करने में सक्षम हैं। बहरहाल, अभी भी कुलदीप को राजनीति में लंबा रास्ता तय करना है। इस रास्ते पर भाजपा उनसे कंधे से कंधा मिलाकर जरूर चल रही है, लेकिन हरियाणा में भाजपा का ज्यादा वजूद नहीं है, इसलिए जानकारों का कहना है कि अभी कुलदीप को और मेहनत करने की जरूरत है। जानकारों के मुताबिक यदि हजकां-भाजपा गठबंधन प्रदेश की सत्ता में काबिज होगा, तो उसका पूरा श्रेय कुलदीप की मेहनत को जाएगा। दरअसल दिल्ली में भाजपा के नेता देश की राजनीति को बदलने के बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन उन्हें दिल्ली से सटे हरियाणा की सुध लेने की फुर्सत नहीं मिलती है। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज खुद को प्रधानमंत्री का स्वभाविक प्रधानमंत्री बताती हों, लेकिन उनके गृहराज्य में उनकी पार्टी की क्या हालत है, यह जानने का उनके पास समय ही नहीं है। वह स्वयं भी चुनाव हरियाणा से नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश से लड़ती हैं। वैसे कहते हैं कि यह बात कुलदीप भी बखूबी समझते हैं कि उन्हें भाजपा से ज्यादा उ मीद करने की बजाय अपने प्रयासों से इस गठबंधन को सत्ता दिलानी है। बहरहाल, इस पर राजनीतिक पंडितों की नजरें लगी हुई हैं कि प्रदेश में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव में कुलदीप क्या कमाल दिखाते हैं।

NO Narco test and Brain mapping from now….

देश में अपराधियों की ब्रेम मेपक के मामले पर अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी सवाल खड़े कर दिए है… (आदित्य सिन्हा)

Narco and brain mapping

आरुषि हत्याकांड में 17 मई 2010 को अभियुक्तों की मर्जी के खिलाफ ही
उनका नारकोएनालेसिस व ब्रेनमैपिंग परीक्षण करवाया गया था जिसका परिणाम
कुछ नहीं निकला। हैदराबाद की मक्का मस्जिद में बम धमाकों के अभियुक्तों
देवेंद्र गुप्ता व लोकेश के भी उनकी मर्जी के खिलाफ परीक्षण करवाए गये थे
जिसके लिए उन्होंने कोई सहमति नहीं दी थी। अगस्त 2010 में भी पुणे में
महिला प्रसूति शल्य चिकित्सक सहित चार लोगों का परीक्षण करवाया गया था।
इन पर 66 बच्चों को गर्भ में ही मारने का आरोप था। 2008 में महिला सहित
तीन अभियुक्तों का परीक्षण करवाया गया जिसमें एक अभियुक्त की तबीयत
खराब हो गई थी तथा परीक्षण रोक दिया गया था।

भी हाल ही में दिल्ली की गीतिका आत्महत्या मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने का अभियुक्त व हरियाणा सरकार के पूर्व गृहमंत्री गोपाल कांडा के ब्रेन मैपिंग टेस्ट के लिए दिल्ली पुलिस ने प्रयास किए थे क्योंकि वह जांच में सहयोग नहीं कर रहा था। लेकिन पुलिस को सफलता नहीं मिली और दिल्ली पुलिस को बिना ब्रेन मैपिंग टेस्ट के ही जांच आगे बढ़ानी पड़ी क्योंकि यह टेस्ट अब अभियुक्त की स्वीकृति के बिना नहीं हो सकता। हैदराबाद की सीबीआई की विशेष अदालत के न्यायाधीश यू. दुर्गाप्रसाद ने आय से अधिक संपत्ति एकत्रित करने के आरोप में आंध्र प्रदेश के सांसद तथा वाईएस कांग्रेस के सुप्रीमो जगन मोहन रेड्डी व उनके सहायक विजय साई रेड्डी के खिलाफ सीबीआई की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें सीबीआई ने इन दोनों के खिलाफ नारकोएनीलेसिस,ब्रेन मैपिंग तथा पॉलीग्राफ परीक्षण करवाने की प्रार्थना की थी। सांसद जगन मोहन रेड्डी आंध्र के पूर्व मु यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी के पुत्र है और उन पर अपने पिता के मु यमंत्रीत्व काल में आय से अधिक करोड़ों रुपए बटोरने का आरोप है जिसकी जांच सीबीआई कर रही है। सीबीआई ने अदालत को बताया कि जगन मोहन से 27 मई को उनकी गिर तारी के बाद 30 जून तक 92 घंटे तथा विजय साई से पिछले छह माह में 300 घंटे पूछताछ की गर्इ लेिकन सीबीआर्इ दोनो ंस ेकछु भी नही ंउगलवा पाइर्। सीबीआर्इ न ेइसीलिए अदालत से उनके नारको व अन्य परीक्षणों की प्रार्थना की थी। अदालत के सामने सुप्रीम कोर्ट के 5 मई 2010 के उस निर्णय को रखा गया जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई को आदेश दिए थे कि अभियुक्त की बिना सहमति के नारको व अन्य वज्ञ्ैाानिक परीक्षण नही ंकिए जाए ंजिनम ेंअभियक्तु को कोई पदार्थ दिया जाता हो। न्यायाधीश यू. दुर्गाप्रसाद ने इससे पहले भी फरवरी 2012 में विजय साई रेड्डी के नारको परीक्षण के लिए मना किया था। सीबीआई ने इस आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी। वहां भी सीबीआई की दाल नहंीं गली। अंत में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले 2010 के आदेश के अनुसार ही नारको परीक्षण के सभी मामलों को तय करने के आदेश दिए जिसके अनुसार दोनों अभियुक्तों के नारको परीक्षण करवाने के लिए बिना उनकी सहमति के परीक्षण करवाने को मना कर दिया। अब सीबीआई के पास अदालत में आरोपपत्र पेश करने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया है। सेल्वी एवं अन्य बनाम कर्नाटक राज्य में सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों तत्कालीन मु य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन ,न्यायाधीश आरवी रविंद्रन तथा न्यायाधीश जेएम पांचाल की खंडपीठ के समक्ष बचाव पक्ष की ओर से मई
2010 को कहा गया था कि इन नारको परीक्षणो ंम ेंटथू सीरियम, जिस ेअतंरराष्टी्रय बाजार में सोडियम पेंटाथॉल के नाम से जानते हैं, अभियुक्त को इंजेक्शन के माध्यम से दी जाती है। यह पदार्थ पीले रंग का चीनी के दाने के आकार का होता है जिसे दवा के रूप में तैयार किया जाता है। इस दवा से परीक्षण करवाने वाला हल्की बेहोशी की हालत में आ जाता है और उस अवस्था में उससे पूछताछ की जाती है। रिकार्ड के लिए उस परीक्षण की सीडी भी बनाई जाती है जिसे अदालत में उसके खिलाफ ही प्रयोग किया जाता है। दुनिया में ओहिया सबसे पहला राज्य है जहां इस दवा का प्रयोग फांसी देने के लिए दिसंबर 2009 में आरंभ किया गया था। वहां वैसनिथ बिस नाम के व्यक्ति को इस दवा के जरिये मौत की सजा दी गई थी, जिसकी मृत्यु 10 मिनट में हो गई थी। इसके बाद वहां वर्मन स्मिथ तथा दरयाल दुर्र नाम के व्यक्तियों को इसी दवा के जरिये मौत की सजा दी गई थी जिन्हें मरने में आठ मिनट का समय लगा था। अमेरिका में ही इस दवा के जहरीले इंजेक्शन से 10 सितंबर 2010 को वैसनिथ ब्राउन को फांसी दी गई थी जिसे मरने में केवल डेड़ मिनट का समय लगा। अमेरिका ने इस दवा की मात्रा पांच ग्राम रखी थी। इनके अलावा भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह कहा गया कि ये सभी परीक्षण हमारे संविधान के अनुच्छेद 20(3) के प्रतिवूसल हैं क्योंकि संविधान के इस अनुच्छेद में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को उसे अपने ही खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। यहां इन परीक्षणों के द्वारा लिए गए अभियुक्त के बयान का प्रयोग उसके ही खिलाफ किया जाता है। इसके अलावा भी सीआरपीसी 1973 की धारा 161(2) का भी इन परीक्षणों के द्वारा उल्लंघन होता है जिसके अनुसार यह माना जाता है कि अभियुक्त जो भी बयान दे रहा है वही सच है और उसके द्वारा जांच अधिकारी के समक्ष दिए गए बयान को ही सच माना जाएगा। इन परीक्षणों से लिए गए बयान उपरोक्त धारा में दिए गए बयानों से अक्सर भिन्न हो जाते हैं जिससे इस धारा का उल्लंघन होता है। तीन जजों की खंडपीठ ने उपरोक्त सभी पर घ्यान करते हुए निर्णय दिया था कि नारकोएनालेसिस, ब्रेनमैपिंग,पॉलीग्राफ तथा ब्रेन इलेक्ट्रीकल एक्टीवेशन पो्रफाइर्ल जसै ेकोर्इ भी परीक्षण अभियक्तु की बिना मर्जी के नहीं ंकिया जा सकता। राष्टी्रय मानव अधिकार आयोग की सिफारिशो ंको घ्यान म ेंरखत ेहएु अदालत ने सहमति शब्द की भी विस्तृत व्या या की है। अदालत ने कहा कि अभियुक्त का कोई भी परीक्षण उसकी सहमति के बिना नहीं कराया जा सकता। यहां सहमति का मतलब सीबीआई की बात को स्वीकार करने से नहीं है। अदालत ने कहा कि सीबीआई को अभियुक्त को उसके वकील के समक्ष बताना होगा कि जो भी परीक्षण सीबीआई करवाने जा रही है उसके कुछ विपरीत प्रभाव भी हैं जिनके प्रभाव से उसका स्वास्थ्य खराब हो सकता है और दवा की मात्रा गलती से भी अधिक देने पर उसकी मौत हो सकती है। वकील को भी अपने मवुक्किल को समझान ेके लिए समय दनेा होगा। इसके बाद सीबीआई उस अभियुक्त को सक्षम न्यायालय में उसके वकील की उपस्थिति में पेश करेगी, जहां वकील के सामने संबंधित जज उस अभियुक्त से जानकारी लेगा कि उसे इन परीक्षणों के बारे में जो बताया गया है,वह सही है अथवा नहीं। इसके बाद उस अभियुक्त के बयान लिए जाएंगे जिसमें वह अपनी सहमति दर्ज करवा सकता है। यहां भी उस अभियुक्त के पास मौका है कि वह इन परीक्षणों के लिए मना कर सकता है। सहमति के बाद ही उसका परीक्षण किया जा सकता ह ैलेिकन यह परीक्षण किसी चिकित्सक की उपस्थिति में ही संपन्न किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद देश में इन परीक्षणों में कमी तो आई है लेकिन अभियुक्त की बिना सहमति के अभी भी परीक्षण जारी हैं। आरुषि हत्याकांड में 17 मई 2010 को अभियुक्तों की मर्जी के खिलाफ ही उनका नारकोएनालेसिस व ब्रेनमैपिंग परीक्षण करवाया गया था जिसका परिणाम कुछ नहीं निकला। हैदराबाद की मक्का मस्जिद में बम धमाकों के अभियुक्तों देवेंद्र गुप्ता व लोकेश के भी उनकी मर्जी के खिलाफ परीक्षण करवाए गये थे जिसके लिए उन्होंने कोई सहमति नहीं दी थी। अगस्त 2010 में भी पुणे में महिला प्रसूति शल्य चिकित्सक सहित चार लोगों का परीक्षण करवाया गया था। इन पर 66 बच्चों को गर्भ में ही मारने का आरोप था। 2008 में महिला सहित तीन अभियुक्तों का परीक्षण करवाया गया जिसमें एक अभियुक्त की तबीयत खराब हो गई थी तथा परीक्षण रोक दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले भी अत्तूसबर 2009 में भी दिल्ली के एक मजिस्टे्रट ने माओवादी नेता कोबाद घांडी के नारको व ब्रेनमैपिंग परीक्षणों के लिए आदेश दे दिए थे लेकिन उसने इसका विरोध किया था तथा दिल्ली उच्च न्यायालय की जज इंद्रमीत कौर ने इन परीक्षणों को करवाने से सीबीआई रोका था। अगस्त 2010 में इलाहाबाद के मु य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने वहां हुए बम धमाके के दो अभियुक्तों के नारको परीक्षण के लिए आदेश दिए थे लेकिन उच्च न्यायालय ने मना करने पर /उनका परीक्षण नहंीं हो पाया। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद सीबीआई ने पूरे देश में अभियुक्तों की सहमति लिए बिना ही लगभग 26 नारको परीक्षण करवाए हैं जबकि सांसद जगन मोहन रेड्डी सहित विभिन्न मुकदमों में लगभग 200 लोगों ने सहमति देने के लिए मना कर दिया। सीबीआई के पूर्व निदेशक अश्वनी कुमार का कहना है कि मक्का मस्जिद और समझौता एक्सप्रेस में हुए बम धमाकों में आपस में कोई संबंध अवश्य है लेकिन इन वैज्ञानिक परीक्षणों के न होने के कारण जांच में बाधा पड़ गई। सुप्रीम कोर्ट के वकील व संविधान विशेषज्ञ हरीश साल्वे का कहना है कि संविधान में अनुच्छेद 19 में बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार दिया है
और अनुच्छेद 20(3) में चुप रहने का भी अधिकार भी दिया गया है जिसके अनुसार व्यक्ति अपनी मर्जी से चुप भी रह सकता है। उसे बोलना चाहिए या चुप रहना चाहिए ,यह उसका व्यक्तिगत अपना निर्णय होना चाहिए। इन परीक्षणों से संविधान में दिए गए अधिकारों का हनन तो होता है और उसके जीवन को भी खतरा हो सकता है। इन परीक्षणों से अनुच्छेद 21 में स्वतंत्र जीवन जीने का अधिकार भी प्रभावित होता है। परीक्षणों से जांच एजेंसी जो कुछ साबित करना चाहती है वह मकसद
भी अक्सर पूरा नहीं होता। बहुत से मामलों में कुछ भी नहंी निकला और बिना वजह ही उस टूथ सीरियम दवा का सेवन अभियुक्त को करवाना पड़ा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय की प्रशंसा करते हुए कहा कि सीबीआई को अब बिना सहमति के परीक्षण नहीं करवाना चाहिए और यदि करवाती है तो सीबीआई के उन अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है जो परीक्षण करवाते हैं। नारको व ब्रेन मैपिंग जैसे परीक्षणों के लिए सहमति देना या उसके लिए मना करना भी अभियुक्त का अपना निजी कानूनी अधिकार है।

Will Sheila Dixit Retain her power in Delhi Again..

She and Her Delhi..

She and Her Delhi..

                                                                                                   फिर दिल्ली फतह की तैयारी में शीला

शीला जी को दिल्ली संभाले 14 बरस होने वाले हैं और ज्यादा नहीं तो कम से कम 14 बार यह हवा जरूर चली होगी। फिर भी, वह कायम हैं और अगर अनहोनी न हुई तो इंशाअल्लाह वह 15 बरस भी पूरे कर सकती हैं और संभव है कि लगातार चौथी बार जीतने के इरादे से विधानसभा चुनावों में उतरें। अब सवाल यह है कि ऐसी हवा कौन चलाता है। जब 1998 में कांग्रेस ने शीला दीक्षित के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था तो वह करिश्माई व्यक्तित्व नहीं थीं। कांग्रेस ने ऐसा कुछ किया भी नहीं था कि 70 सदस्यीय विधानसभा में 53 सीटें जीत जाए। तब बीजेपी को प्याज ने मार डाला था। प्याज की महंगाई ने जनता को रुला दिया था और बीजेपी इस रूदन को सुन ही नहीं पाई थी। शीला दीक्षित के सीएम बनने में किसी बड़े कांग्रेसी को कोई एतराज नहीं था। सभी उन्हें 10, जनपथ से भेजा हुआ प्रतिनिधि मानते हुए खामोश थे। यह खामोशी इसलिए भी थी कि वे अंदर ही अंदर आश्वस्त थे। सभी धुरंधर कांग्रेसी उनके शपथ ग्रहण समारोह में ही दावा कर रहे थे कि यह तो 4-6 महीने का स्टॉप गैप अरेंजमेंट है। उसके बाद तो धुरंधरों में से ही कोई गद्दी संभाल लेगा। अब पीछे मुडक़र देखें तो वे सारे धुरंधर धूल धूसरित होते नजर आते हैं। अब शीला दीक्षित ही सबसे बड़ी धुरंधर हैं। हां, इस दौरान शीला दीक्षित को अपनों का ही ज्यादा विरोध सहना पड़ा। बीजेपी तो कमोबेश निष्प्राण ही रही लेकिन सीएम की कुर्सी हिलाने का या यों कहिए कि कुर्सी हिलाने की हवा चलाने का काम कांग्रेसियों ने जमकर किया। 2004 के बाद तो केंद्र में कांग्रेस के शासन संभालने के बाद तो यह हवा गाहे-बगाहे चलती ही रहती है। जब भी केंद्र में बदलाव की चर्चा होती है या मंत्रिमंडल में विस्तार के हालात पैदा होते हैं, यह हवा भी गि ट पैक की तरह साथ ही चली आती है कि शीला जी को केंद्र में भेजा जा रहा है। ऐसी हवा चलाने वालों के अल्टिमेटम भी तय होते हैं – कभी प्रदेश कांग्रेस से सीधा टकराव, कभी कॉमनवेल्थ गे स की मजबूरी, कभी गे स
के बाद करप्शन के आरोप तो कभी बगावत का सिलसिला। देखते ही देखते 14 बरस बीत गए लेकिन यह हवा बेअसर रही। हां, उसका इतना असर अवश्य हअुा कि कर्इ बार शीला दीक्षित न ेअपन ेआपको और मजबतू साबित करने के लिए या तो मंत्रियों के विभाग बदल दिए या फिर उन्हें ही बदल दिया। अब फिर हवा चल रही है। इस बार की हवा शीला दीक्षित को दिल्ली से तो हटा रही है लेकिन उनका राजनीतिक कद और बढ़ा रही है। दिल्ली की मु यमंत्री की तुलना में केंद्र में होम मिनिस्टर बन जाना बहुत बड़ा एलिवेशन ही तो है। इसीलिए कुछ लोग यह भी मानते हैं कि यह हवा उनके मुफीद है और शीला दीक्षित खुद भी ऐसा ही चाहती हैं। इसीलिए संभव है कि हवा उनके समर्थकों की ओर से ही चली हो। वैसे, वह खुद इस बात से इनकार करती हैं लेकिन उनके धुर विरोधी एक केंद्रीय मंत्री का मानना है कि अब शीला दीक्षित को केंद्र में नहीं ले जाया जाएगा। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि कांग्रेस उन्हें बदलती है तो वह खुद ही बैकफुट पर चली जाएगी। कांग्रेस मान लेगी कि शीला दीक्षित को फेल होने के कारण बदला गया है जबकि सचाई यह है कि कांग्रेस तो क्या बीजेपी में भी ऐसा कोई चेहरा नहीं है जिसे सामने रखकर वह आगामी विधानसभा चुनाव लड़ ले। बीजेपी ने 1998 के चुनावों से ठीक पहले यही गलती की थी और साहिब सिंह वर्मा को हटाकर सुषमा स्वराज को ले आए थे। जनता में यही संदेश चला गया कि बीजेपी खुद ही गलती मान रही है। कांग्रेस में डॉक्टर ए. के. वालिया या अजय माकन को सरकार पर पूरी पकड़ बनाने और फिर अपने नेतृत्व में अगला चुनाव जिताने के लिए पूरा समय ही कहां मिल पाएगा। प्रदेश अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल तो खैर कहीं दौड़ में ही दिखाई नहीं देते। यह सच है कि कांग्रेस कब क्या फैसला कर ले, अंदाजा लगाना मुश्किल है लेकिन हवा की हवा निकल जाए तो भी कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए। विधानसभा चुनाव नवंबर 2013 में होने हैं और दिल्ली सरकार को काम करने के लिए अभी एक साल और बचा है। सच तो यह है कि शीला सरकार अभी से ही आगामी चुनावों के मैनेजमेंट में जुट गई हैकोई कुछ भी कहे, सीएम शीला दीक्षित तीन बार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद चुनावी मैनेजमेंट की मास्टर हो चुकी हैं। अब एकाएक योजनाओं की बाढ़ आ गई है। मंत्री ज्यादा ऐक्टिव हो गए हैं। ऐसी योजनाएं लागू की जा रही हैं कि उनका यह संदेश साफ तौर पर जाए कि सरकार काम कर रही है। बहुत से लोग मानते हैं कि सडक़ें, लाई ओवर, सब-वे, बसें और अन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर से मिली सुविधाओं को देखकर ही जनता ने तीनों बार शीला सरकार को चुना है। कॉमनवेल्थ गे स के बाद से ऐसे बड़े प्रॉजेक्टों पर ब्रेक लग गया था लेकिन अब फिर से वे प्रॉजेक्ट बेपर्दा होने शुरू हो गए हैं। विकासपुरी से नोएडा तक के 40 किमी. के सफर को सुहाना बनाने का अभियान शुरू हो गया है। ईस्टर्न और वेस्टर्न कॉरिडोर पर बात फिर चल पड़ी है। मुनक नहर पर हरियाणा से जवाब तलब हो रहा है। सरकार अब दिल्ली को केरोसीन फ्री सिटी बनाने का दम भर रही है। अन्नश्री, गरीब महिलाओं के बैंक खाते और विकलांगों को पेंशन ऐसी योजनाएं हैं जो जमीनी स्तर पर कैसी भी हों लेकिन उनका ऐसा प्रचार अवश्य किया जाएगा कि सरकार की पॉजिटिव छवि जनता के दिमाग पर छा जाएगी। अब सवाल यह है कि इस मैनेजमेंट को विपक्ष क्यों नहीं तोड़ पाता? विपक्ष से पहले तो पक्ष की ही बात कर लें। शीला दीक्षित का त ता पलटने के लिए कांग्रेस में कम उठापटक नहीं हुई लेकिन तीसरी बार चुनाव जीतने के बाद वे स्वर मद्धम पड़ गए। कॉमनवेल्थ गे स घोटालों की गूंज ने एक बार खतरा पैदा किया था लेकिन सचाई यह है कि सीएम की गद्दी को फिलहाल अपनों से कोई खतरा नहीं है। वह चुनावी मैनेजमेंट में इन अपनों पर भी विश्वास नहीं करतीं बल्कि उनकी बहन-बेटी और घर के अन्य लोग बागडोर संभालते हैं। किसी भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को उन्होंने विश्वास लायक नहीं माना और उनका अनुभव सही भी साबित हुआ है। दूसरी तरफ, बीजेपी भी इस मैनेजमेंट का तोड़ नहीं निकाल पाई। एमसीडी चुनावों की जीत का खुमार अभी टूटा ही है लेकिन बीजेपी नेताओं की सारी ताकत च्सीएम इन वेटिंगज् का फैसला करने में ही निकल जाती है। बीजेपी मानकर चल रही है कि अभी काफी वक्त पड़ा है और अभी तेल देखना है, तेल की धार देखनी है। बीजेपी के तीन च्वीज् विजेंद्र गप्तुा, विजय गोयल और विजय मल्होत्रा की सक्रियता शीला को टक्कर देने की बजाय आपस में ही टक्कर लेने तक सीमित हो जाती है। पिछले विधानसभा चुनावों से पहले भी बीजेपी की ताकत वहीं तक सिमट गई। हां, बीजेपी अगर अभी से तय कर ले और उस फैसले को घोषित भी कर दे तो शायद टकराव की वर्तमान स्थिति खत्म हो जाए। तब बीजेपी शीला के मैनेजमेंट का तोड़ भी ढूंढने की कोशिश कर सकती है। फिलहाल तो शीला ने बिसात भी बिछा ली है और अपनी चालें भी चल रही हैं। बीजेपी को जरूरत है टॉनिक की
दिल्ली में बिल लोगों पर बिजली गिरा रहे हैं। सरकार तक बिजली के झटकों से आहत है और इससे उबरने के रास्ते तलाश कर रही है। सोचा था, चुनाव अगले साल हैं। इस साल जितने सितम ढाने हैं, ढा लो। नाम भले ही डीईआरसी का हो, लेकिन क्या मजाल है कि सरकार की मर्जी के बिना पत्ता भी हिल जाए। रेट कम करने का आदेश इसीलिए तो जारी नहीं हो पाया था। फिर, सरकार को यह भी आशंका नहीं थी कि केजरीवाल इस लड़ाई में कूद
जाएंगे। बीजेपी को तो सरकार कुछ समझती ही नहीं। पिछले 14 साल में एक बार भी ऐसा मौका नहीं आया, जब यह लगा हो कि बीजेपी सरकार को हिला पार्इ ह।ै अब केजरीवाल के हमलो ंस ेसरकार बकैफटु पर गर्इ तो बीजपेी को भी सफार्इ दनेी पडी़ कि बिजली के फ्रंट पर उसने क्या कुछ नहीं किया। सच है- धरने दिए, पोस्टर-बैनर लगाए, प्रदर्शन किए। पर सरकार के कानों पर तो जूं भी नहीं रेंगी। आखिर क्यों? कोई भी टॉनिक बीजेपी की सेहत नहीं बना पाया और उसकी हालत कुपोषित बच्चे जैसी ही रही है। दिल्ली में बीजेपी की कमजोरी ठीक वैसी ही है, जैसी हाईकमान में है। वाजपेयी-आडवाणी के बाद बीजेपी को चलाने के लिए भारी-भरकम शरीर भी काम नहीं आ रहे। वाजपेयी-आडवाणी का राष्ट्रीय स्तर पर जो मुकाम था यानी किसी पद पर रहें या नहीं, जनता उन्हें स मान की दृष्टि से देखती थी। वही हालत दिल्ली में खुराना-मल्होत्रा-साहनी की थी। वाजपेयी उम्र के आगे झुक गए, तो आडवाणी को पार्टी ने खुद ही दरकिनार कर दिया। आज भी आडवाणी अन्य नतेाओ ंकी तलुना म ेंज्यादा स्वीकार्य होंगे। दिल्ली में खुराना को पार्टी ने खुद निपटा दिया और साहनी को दरकिनार कर दिया। मल्होत्रा अब दरकिनार हो रहे हैं। जिस तरह राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी ने नंबर दो की पंक्ति तैयार नहीं की, उसी तरह दिल्ली में भी इस च्तिकड़ी के बाद कौनज् के सवाल का जवाब तलाशा ही नहीं गया। ऐसा नहीं है कि मौके नहीं आए। बीजेपी दिल्ली में कई बार सत्ता में आई लेकिन दूसरी पंक्ति के नेता उतने ही उम्रदराज रहे जितनी यह तिकड़ी। लिहाजा एकाएक नेतृत्व का अभाव पैदा हो गया है। खुराना के बाद मल्होत्रा हैं लेकिन वह इतने लंबे अरसे तक केंद्र की राजनीति में रहे हैं कि दिल्ली में उनकी दाल नहीं गली। कोहली को आजमाया। डॉक्टर हर्षवर्धन भी कई साल तक अध्यक्ष रहे लेकिन वही स्थिति रही, जैसी हाईकमान में मुरली मनोहर जोशी, वेंकैया नायडू या फिर राजनाथ सिंह की रही है। राजनीतिक कद और पार्टी
में स्वीकार्यकता कभी नहीं मिली। दरअसल, हाईकमान या दिल्ली दोनों ही जगह पार्टी को संभालने-संवारने की बजाय नेताओं का लक्ष्य प्रधानमंत्री या मु यमंत्री की कुर्सी हो जाती है। बीजेपी 2004 से अब तक इसी चिंता में डूबी जा रही है कि वाजपेयी के बाद प्रधानमंत्री पद को कौन सुशोभित करेगा? यह सवाल तो तब पैदा होगा, जब सत्ता में आएंगे। लेकिन सत्ता में कैसे आएं? इस सवाल पर पार्टी नतेाओ ंकी गभंीरता दिखार्इ नही ंदतेी। यही हाल दिल्ली का भी है। मु यमंत्री कौन बनेगा- मैं बनूंगा। 2003 में खुराना को नहीं लौटने देना, इसी उधेड़बुन में पार्टी नेता लगे रहे और पिछली बार 2008 में विजय कुमार मल्होत्रा को कमजोर करने में किसी ने कसर नहीं छोड़ी। ऐसा नहीं है कि शीला सरकार ने पार्टी को टॉनिक देने वाले मौके न दिए हों। अब बिजली के खिलाफ आंदोलन को ही देख लीजिए। सरकार बीजेपी के किसी आंदोलन से नहीं घबराई। यहां तक कि केजरीवाल को पूछना पड़ा है कि भई आपने आंदोलन क्यों नहीं किया क्योंकि वे आंदोलन जनता के दिमाग में रजिस्टर ही नहीं हो पाए। बिजली आंदोलन की बजाय बीजेपी नेताओं की नजर इस सवाल पर अटकी हुई है कि आखिर अगले विधानसभा चुनाव किसके नेतृत्व में लड़े जाएंगे। अगर विजेंद्र गुप्ता को मौका मिल गया तो फिर उनकी टांग कैसे खींची जाए और अगर विजय गोयल आगे आ गए तो उन्हें कैसे पीछे किया जाए। बिजली आंदोलन भी इसी क्रेडिट की लड़ाई में उलझकर रह गया है। यही वजह है कि लोगों को यह लग रहा है कि केजरीवाल के आंदोलन के कारण सरकार डिफेंिसव मोड म ेंह ैऔर इन झटको ंका असर कम करने के लिए कोई फॉर्म्युला तलाश कर रही है। सरकार के इस फॉर्म्युले से जनता को राहत मिलेगी तो उसका श्रेय भी केजरीवाल को मिलेगा या फिर सरकार अपनी पीठ थपथपा लेगी। बीजेपी को कुछ क्यों नहीं मिलेगा, यह उसके लिए सोचने की बात है। – विशेष संवाददाता (दिल्ली)

Editorial of helpliene today “Why death sentence should be abandoned”

vinita sinha's editorial

vinita sinha’s editorial

मौत की सजा क्यों खत्म हो?

26नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले के एक मात्र जिंदा बचे पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब को आखिरकार फांसी पर चढा दिया गया। अजमल कसाब के लिए फांसी की सजा भी कम थी उसने अपने साथियों के साथ एक घृणित काम किया था जो किसी भी देश की संप्रभुता पर सीधा हमला था। निर्दोष लोगों की जान लेने के लिए पाकिस्तान के आंतकवादी संगठनों ने कसाब और उसके साथियों को भारत भेजा था। कसाब को तो कानून ने सजा दे दी लेकिन पाकिस्तान में आज भी उसके आका जिंदा बैठे है। कसाब की फांसी की सजा के बाद अब भारत सरकार का अगला लक्ष्य पाकिस्तान में बैठे साजिशकर्ताओं को भारत लाकर उनपर मुकदमा चलाना है। कसाब की फांसी की सजा के बाद अब कहा जा रहा हैं कि संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरु को भी फांसी पर चढ़ा दिया जाना चाहिए। हालांकि राष्ट्रपति ने एक बार फिर गुरु की फांसी की याचिका को एकबार फिर गृहमंत्रालय के पास भेज दिया है। अफजल गुरु को फांसी देने के आदेश पूर्व राष्ट्रपति ने उसकी दया याचिका को ठुकरा कर दे दिए थे। दरअसल अफजल गुरु ने भी पाकिस्तानी आकाओं के साथ मिलकर देश की सर्वोच्च पंचायत के ऊपर हमले की साजिश रची थी। अब कहा जा रहा हैं कि अफजल के खिलाफ अदालत को कोई पु ता सबूत नहीं मिले। उसके मामले में सही से परिक्षण नहीं किया गया। इस तरह की बाते वे राजनीतिक संगठन और मानवाधिकार संगठन कह रहे हैं जो अफजल गुरु के मामले को लेकर राजनीति कर रहे हैं। अफजल गुरु के मुद्दे पर देश में राजनीति जमकर हो रही है दूसरी तरफ वह तिहाड़ जेल में आराम फरमा रहा हैं उसे भी पता हैं कि भारत में उसके हमदर्द राजनीतिक दलों में बहुत से लोग है जो उसे फांसी की सजा तो नहीं होने देंगे। भारत में फांसी की सजा पर पर विवाद खड़ा होने लगा है एक वक्त था जब किसी अपराधी को फांसी की सजा होती थी तो कहा जाता था कि इसने अपराध ही इतना बड़ा किया है कि फांसी तो होनी ही थी। आज देश से फांसी की सजा को खत्म करने के लिए भी आवाज उठ रही है। इस दिशा में सबसे बड़ा सवाल यह हैं कि अगर फांसी की सजा के प्रावधान को खत्म कर दिया जाए तो समाज में अपराधियों को भय नहीं रहेगा। बड़े से बड़ा अपराध करने वाले यही समझेंगे कि मौत की सजा तो नहीं होगी चाहे सारी उम्र जेल में बितानी पड़ जाए। आज जिन लोगों को आजीवन कारावास की सजा हो चुकी है उन्हें जेल में तमाम सुविधाए मुहैया कराई जाती है। पैसों के बल पर जेल में बंद बड़े अपराधी वहा ऐश कर रहे है। अगर ऐसे अपराधियों को मौत की सजा का भय नहीं रहा तो फिर समाज में अपराधों की बाढ़ आ जाएगी। ऐसा कहा जा रहा हैं कि दुनिया के 140 मुलकों में फांसी की सजा नहीं है लेकिन इसी संदर्भ में हमें यह भी समझना होगा कि दुनिया में कहीं भी जाति प्रथा, इज्जत के लिए हत्या, बच्चों से बलात्कार के बाद हत्या, दहेज के लिए हत्या, जमीन जायदाद के लिए हत्या, अपरहण के बाद हत्या और दलितों पर अत्याचार के बाद उन्हें मौत के घाट उतारने जैसे मामले सुनने में नहीं आते लिहाजा वहां कानून की किताब से मौत की सजा को खत्म कर दिया गया है। लेकिन वहा मौत की सजा के बदले 100 से 300 साल की सजा जैसा प्रावधान हैं। संगीन अपराध के अपराधियों को सारी उम्र जेल में ही सडऩा पड़ता है न उन्हें पेरोल दिया जाता है न ही उनसे मिलने के लिए किसी को इजाजत दी जाती भारत में यह संभव नहीं है । लिहाजा फांसी के प्रावधान को खत्म करने की मांग करने वालों को पहले सोचना चाहिए कि हमारे देश में यह संभव है? देश की शीर्ष अदालत ने मौत की सजा दिए जाने वाले मामलों को लेकर एक निर्देश दे रखा है संगीन से संगीन जुर्म को अंजाम देने के मामलों में ही मौत की सजा दी जाती है। देश के अपराधियों में मौत की सजा का भय रहना चाहिए वरना अपराधों की रोकथाम संभव नही हों सकती। मौत की सजा को खत्म करने की मांग रखने वाले संगठनों को पहले इस दिशा में सोचना चाहिए। मौत की सजा क्यों खत्म हो?

Rajeev gandhi the computer man of india

Rajeev Gandhi A visionary leader…..

Man behind computers in India

Man behind computers in India


• Rajiv Gandhi during his Prime Minister ship brings a total change in the Indian communication system and his revolutionary steps changed the Indian communication and Information Technology totally. Prior to Rajiv Gandhi’s era neither the Indian people nor the Indian Government was aware or accustomed with the concept called information technology. It is pertinent to mention that Rajiv Gandhi perhaps would not be able to take the steps without the assistance of Dr. Shyam Pitroda who was originally from Orissa.
• That when computer was first introduced in India I was a student of school and to me it was like a typewriter placed before a television set. That when Rajiv Gandhi’s mother Smt Indira Gandhi was assassinated in 1984 at that time only Indian National Television’s (National Doordarshan) broadcasting. All India Radios transmission and local news papers information was our only source of knowledge.
• I still remember that in our Indian Television at that time I saw most probably a small Japanese T.V. unit is taking out and or opening a small umbrella like thing from a suitcase and was doing something.
• I latter under stood from the commentary of the Indian T.V. anchor that those person was showing live telecast of the cremation ceremonies to the Japanese spectators. The incident really astonished me a lot as at that point of time we the Indian people could not imagine such thing.
• In early 80’s one of my relative I remembered went for a foreign tour mainly Europe and I went with my father till Dumdum Airport now known as Netaji Subhas Chandra Bose International Airport; they returned to India after one and a half months and I still remember my elder cousin sister gifted me one sketch pen set bought from UK consisting of 3r colors shade.
• I was very much interested to know from my cousin about Europe and its people but she could give me a little information as she was not interested over the matter she only told me there television is broadcasted round the clock and there is more than 20 channel’s I was spell bound at that time we had only one channel and that too telecasted for a limited period in the evening.
• The satellite channel, cable channel the word was unknown to us. When Rajiv Gandhi first introduced computer in India few Left Political Parties through out the country launched demonstrations and propagated that computer is a super robot like thing and a single computer will finish the job of at least 100 labors as a result of which there will be acute job loss for the people and out of this fear the Left provincial government of the state of West Bengal resistedentry of computer in the state for at least 10 years until there wrong concept broke; and now the same Government is giving utmost importance to the Information and Technology sector and is also financing indigenous computer manufacturing units.
• Today information is a mouse click away for me and I feel sorry for my parents who died in 1996 before I purchase a computer first a PC then a Laptop. I am lawyer and I started my profession depending on the old legal journals of my father’s law library but thereafter in 2005 I purchased my first PC and became accustomed with it I was using windows 98 and gradually I became dependable or better to say addicted to computer in all aspect, instead of raising dust from the old books I am very much comfortable with my laptop as in a click I can find out the required citations.
• Recently for filing a case I went to New Delhi the capital of my country and in a small excretion with my law clerk; mainly for his interest I accompanied him to Indira Gandhi memorial; the house which was once upon a time Mrs. Gandhi’s residence bungalow as Prime minister and also her office at the adjacent bungalow and the place where in 1984 she was assassinated. At present Govt of India had converted two bungalows to a museum in memory of Smt Gandhi and inside that memorial there is a pavilion in memory of her elder son Rajiv Gandhi who was also assassinated at South India few years latter.
• I like that place as it is a historic spot for modern India’s history undoubtedly the house was actually the seat of power of India and its foreign policy. Each time I visited the house and stand in front of Late Rajiv Gandhi’s particular display I find his laptop and also a black and white photograph inside an airplane with that laptop. I became very nostalgic as the owner of the laptop is no more there is no one to charge the batteries or to switch on the system or to shut it down, no one is there to operate the machine it had became silent for ever like its master who once opened the gateway of IT sector of India by introducing computer in our country. Mouse of Rajiv Gandhi’s computer will never be clicked by any one, but it opened a scope for billion and billion clicks of several computers of my countrymen. It is my tribute and homage to the departed soul of a real gentleman of Indian politics had ever seen.

Who is rahul gandhi…

Yuvraj of congress:

Rahul Gandhi greets Kashmiri people during election campaign rally in Anantnag
Born 19 June 1970 (age 42)
New Delhi
Nationality Indian
Political party Indian National Congress

Relations Rajiv Gandhi (father)
Sonia Gandhi (mother)
Priyanka Vadra (sister)

Residence New Delhi
Alma mater
Harvard University
Rollins College
Trinity College, Cambridge

Profession Member of Parliament
As of 5 June, 2011
Rahul Gandhi born 19 June 1970 is an Indian politician and member of the Parliament of India, representing the Amethi constituency. Rahul Gandhi is the General Secretary of the Indian National Congress party. He is the Chairman of the Congress coordination panel for 2014 Lok Sabha polls. A fourth-generation scion of the politically powerful Nehru–Gandhi family, Rahul Gandhi is the son of Rajiv Gandhi (6th Prime Minister of India) and incumbent Congress president Sonia Gandhi, and the grandson of Feroze Gandhi and Indira Gandhi (3rd Prime Minister of India).

 

Early life and career

Rahul Gandhi was born in Delhi on 19 June 1970 as the first of the two children of Rajiv Gandhi, who later became the Prime Minister of India and Sonia Gandhi, who later became President of Indian National Congress, and as the grandson of the then Prime Minister Indira Gandhi. He is also the great-grandson of India’s first Prime Minister, Jawaharlal Nehru. Priyanka Vadra is his younger sister and Robert Vadra is his brother-in-law.

Rahul Gandhi attended St. Columba’s School, Delhi before entering The Doon School in Dehradun (Uttarakhand) from 1981–83. Meanwhile, his father had joined politics and became the Prime Minister on 31 October 1984 when Indira Gandhi was assassinated. Due to the security threats faced by Indira Gandhi’s family from Sikh extremists, Rahul Gandhi and his sister, Priyanka were home-schooled thereafter. Rahul Gandhi joined St. Stephen’s College, Delhi in 1989 for his undergraduate education but moved to Harvard University after he completed the first year examinations.In 1991, after Rajiv Gandhi was assassinated by LTTE during an election rally, he shifted to Rollins College due to security concerns and completed his B.A. in 1994.During this period, he assumed the pseudonym Raul Vinci and his identity was known only to the university officials and security agencies. He further went on to obtain a M.Phil from Trinity College, Cambridge in 1995.After graduation, Rahul Gandhi worked at the Monitor Group, a management consulting firm, in London. In 2002 he was one of the directors of Mumbai-based technology outsourcing firm Backops Services Private Ltd.

Political career

In March 2004, Rahul Gandhi announced his entry into politics by announcing that he would contest the May 2004 elections, standing for his father’s former constituency of Amethi in Uttar Pradesh in the Lok Sabha, India’s lower house of Parliament. The seat had been held by his mother until she transferred to the neighbouring seat of Rae Bareilly. The Congress had been doing poorly in Uttar Pradesh, holding only 10 of the 80 Lok Sabha seats in the state at the time.At the time, this move generated surprise among political commentators, who had regarded his sister Priyanka as being the more charismatic and likely to succeed. It generated speculation that the presence of a young member of India’s most famous political family would reinvigorate the Congress party’s political fortunes among India’s youthful populationIn his first interview with foreign media, Rahul Gandhi portrayed himself as a uniter of the country and condemned “divisive” politics in India, saying that he would try to reduce caste and religious tensions.

Rahul Gandhi won with a landslide majority, retaining the family stronghold with a margin of over 100,000 as the Congress unexpectedly defeated the ruling Bharatiya Janata Party. Until 2006 he held no other office.

Rahul Gandhi and his sister, who is married to Robert Vadra, managed their mother’s campaign for re-election to Rae Bareilly in 2006, which was won easily with a margin greater than 400,000 votes.He was a prominent figure in the Congress campaign for the 2007 Uttar Pradesh Assembly elections; Congress, however, won only 22 seats with 8.53% of votes.

Rahul Gandhi was appointed a general secretary of the All India Congress Committee on 24 September 2007 in a reshuffle of the party secretariat.In the same reshuffle, he was also given charge of the Indian Youth Congress and the National Students Union of India. In 2008, senior Congress leader Veerappa Moily mentioned “Rahul-as-PM” idea when the PM of India Manmohan Singh was still abroad.

In July 2012, Union Law Minister, Salman Khurshid stated that Rahul Gandhi should provide a “new ideology” to meet the present day challenges, the Congress party was facing.

Youth politics

In September 2007 when he was appointed general secretary in charge of the Youth Congress (IYC) and the National Students Union of India (NSUI), Rahul Gandhi promised to reform youth politics. In his attempt to prove himself thus, in November 2008 Rahul Gandhi held interviews at his 12, Tughlak Lane residence in New Delhi to handpick at least 40 people who will make up the think-tank of the Indian Youth Congress (IYC), an organisation that he has been keen to transform since he was appointed general secretary in September 2007.

Under Rahul Gandhi, IYC and NSUI has seen a dramatic increase in members from a two lakhs to twenty five lakhs. The Indian Express wrote in 2011, “Three years later, as another organisational reshuffle is in the offing, Rahul’s dream remains unrealised with party veterans manipulating internal elections in the Youth Congress and a host of people with questionable background gaining entry into it.

2009 elections

In the 2009 Lok Sabha elections, Rahul Gandhi retained his Amethi seat by defeating his nearest rival by a margin of over 333,000 votes. Rahul Gandhi was credited with the Congress revival in Uttar Pradesh where they won 21 out of the total 80 Lok Sabha seats. He spoke at 125 rallies across the country in six weeks. The nationawide elections defied the predictions made by pre-poll predictions and exit polls and gave a clear mandate to the incumbent Congress government (80 seats gained).

Land Acquisition Protests Arrest

On 11 May 2011 Rahul Gandhi was arrested by the Uttar Pradesh police at Bhatta Parsaul village after he turned out in support of agitating farmers demanding more compensation for their land being acquired for a highway project.

2012 Assembly elections

Rahul Gandhi campaigned extensively in the 2012 Assembly elections, especially in the highly politically crucial state of Uttar Pradesh in the hope that his popularity would help revive the Congress in the state. However, the regionalist Samajwadi Party unexpectedly swept the elections. The Congress won 28 seats, an increase of only six seats from the 2007 elections.

Congress activists defended the result in Uttar Pradesh, claiming “there’s a big difference between state elections and national polls”, and pointing out the turn around attributed to Rahul Gandhi in the 2009 Lok Sabha national elections in the state. However, Rahul Gandhi publicly accepted responsibility for the result in an interview after the result was declared.

Political and social views

National security

Rahul Gandhi in a conversation with Timothy J. Roemer, U.S. Ambassador to India, said that he believes Hindu extremists pose a greater threat to his country than Muslim militants. Rahul Gandhi referred specifically to more-polarizing figures in the Bharatiya Janata Party. Also responding to the ambassador’s query about the activities in the region by the Islamist militant organisation Lashkar-e-Taiba (LeT), Rahul Gandhi said there was evidence of some support for the group among certain elements in India’s indigenous Muslim population. These conversations were released as part of the Wikileaks cables in 2010.

Rahul Gandhi has been critical of groups like the RSS and has compared them to terrorist organizations like SIMI.

A day after the 2011 Mumbai bombings, Rahul Gandhi declared: “It is very difficult to stop every single terrorist attack. The idea is that we have to fight terrorism at the local level. We have improved in leaps and bounds. But terrorism is something that it is impossible to stop all the time.”

Corruption

Rahul Gandhi opines that the Lokpal should be made a constitutional body and it should be made accountable to the Parliament, just like the Election Commission. He also feels that Lokpal alone cannot root out corruption. This statement came out on 25 August 2011, on the 10th day of Anna Hazare‘s fast. This statement was considered as a delaying tactic by the opposition and Team Anna‘s members. It was consequently slammed by prominent opposition leaders Sushma Swaraj and Arun Jaitley. The Parliamentary Standing Committee led by Abhishek Manu Singhvi tabled the Lok Bill report in the Rajya Sabha on 9 December 2011. The report recommended the Lokpal to be made into a constitutional body. In response, Hazare attacked Rahul Gandhi, claiming he had made the bill “weak and ineffective”.

Personal life

In 2004, Rahul Gandhi told the press that he has a girlfriend Veronique Cartelli, a Spanish architect who lives in Venezuela